भारतीय जनता पार्टी विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की तरह जाति गणना कराने, सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने या आरक्षण बढ़ाने की बातें नहीं कर रही है लेकिन बहुत बारीक तरीके से वहीं राजनीति कर रही है, जो ‘इंडिया’ की पार्टियां कर रही हैं। झारखंड में भाजपा की राजनीति इसकी मिसाल है। वहां भाजपा ने एक एक करके सभी सवर्ण नेताओं को किनारे कर दिया है। हो सकता है कि आगे किसी सवर्ण नेता को कोई जिम्मेदारी मिले लेकिन अभी प्रदेश संगठन से लेकर केंद्रीय संगठन और केंद्र सरकार तक किसी सवर्ण नेता को कोई जगह नहीं है। केंद्र सरकार में झारखंड के दो मंत्री हैं, जिनमें कैबिनेट मंत्री अर्जुन मुंडा आदिवासी हैं और राज्यमंत्री अन्नपूर्ण देवी यादव समाज से यानी पिछड़ी जाति से हैं। भाजपा के केंद्रीय संगठन में भी आदिवासी नेता समीर उरांव को अनुसूचित जनजाति मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया है।
अगर प्रदेश संगठन की बात करें तो दीपक प्रकाश को हटा कर आदिवासी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है। मरांडी की जगह दलित समाज के नेता अमर बाउरी को भाजपा विधायक दल का नेता बनाया गया है और जेएमएम से आए पिछड़ी जाति के जेपी पटेल को सचेतक बनाया गया है। इस तरह प्रदेश से लेकर केंद्रीय संगठन और केंद्र सरकार तक भाजपा ने जिन लोगों को महत्व दिया है वे सभी आदिवासी, दलित या पिछड़े समाज से आते हैं। भाजपा ने विपक्षी गठबंधन की तरह शोर नहीं मचाया है। चुपचाप अपने पत्ते बिछा दिए हैं। भाजपा मान रही है कि अगड़ी जाति के मतदाता उसको छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते हैं। जेएमएम, कांग्रेस और राजद गठबंधन का विकल्प उनके सामने है लेकिन पारम्परिक रूप से अगड़ी जाति के मतदाता भाजपा को वोट देते हैं। सो, उनके वोट की गारंटी मान कर भाजपा विपक्षी वोट में सेंध लगाने की रणनीति पर काम कर रही है। यह रणनीति कितनी कारगर होगी यह नहीं कहा जा सकता है।