केंद्र सरकार ने जाति गणना के मसले पर सुप्रीम कोर्ट में अपना स्टैंड बदल दिया। पहले केंद्र सरकार ने एक हलफनामा देकर जनगणना कानून का हवाला दिया और कहा कि जनगणना या इससे मिलता जुलता कोई भी काम करने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। यानी राज्य सरकार जनगणना तो नहीं ही करा सकती है वह जनगणना से मिलता जुलता भी कोई काम नहीं करा सकती है। लेकिन जिस दिन केंद्र ने यह हलफनामा दिया और मीडिया में खबर आई उसी दिन देर शाम सरकार ने इसे वापस ले लिया। जो नया हलफनामा दिया गया उसमें कहा गया कि जनगणना का काम सिर्फ केंद्र सरकार सकता है। जनगणना से मिलते जुलते काम वाली बात उसमें से हटा ली गई। इसका मतलब है कि केंद्र ने बिहार में जाति गणना और सामाजिक-आर्थिक सर्वे का रास्ता साफ कर दिया।
अब सवाल है कि केंद्र ने ऐसा क्यों किया? क्या पहला हलफनामा किसी गलतफहमी के तहत दायर हो गया था? यह मामला वोट के लिहाज से जितना संवेदनशील है उसे देखते हुए इसमें किसी गलतफहमी की गुंजाइश कम दिखती है। सरकार ने जान-बूझकर बिहार की जाति गणना में अड़ंगा डालने वाला हलफनामा दायर किया और उसके बाद इसे वापस ले लिया। यह इस मामले में केंद्र की दुविधा को दिखाने वाला है। असल में केंद्र सरकार इस मामले में संशय बनाए रखना चाहती है। वह न तो इसके समर्थन में दिखना चाहती है और न विरोध में। इसलिए पहले विरोध कर दिया, फिर समर्थन कर दिया। इस तरह से दुविधा बनी रहेगी। ध्यान रहे भाजपा बिहार में जाति गणना का समर्थन कर रही है और उत्तर प्रदेश में विरोध कर रही है। केंद्र सरकार दोनों काम कर रही है।