बिहार में जाति गणना के आंकडे जारी होने के एक हफ्ते बाद भी इस पर चल रहा विवाद थम नहीं रहा है। अब तो विवाद इतना बढ़ गया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कहना पड़ा कि वे आंकड़ों को लेकर की जा रही शिकायतों पर ध्यान देंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे। असल में एक अभियान के तहत चारों तरफ यह प्रचार शुरू किया है कि गिनती करने वाले लोगों को घरों तक नहीं गए और दफ्तर में बैठ कर आंकड़े भर लिए। यह भी कहा जा रहा है कि पहले से यह संख्या तय कर दी गई थी और उसी संख्या के मुताबिक गिनती के आंकड़े भरे गए हैं। इस आधार पर जाति गणना के आंकड़ों को खारिज करने और नए सिरे से गिनती कराने की मांग हो रही है। सबसे पहले लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने इसकी मांग की।
चिराग पासवान विदेश दौरे पर थे और लौटने के बाद उन्होंने तुरंत इसकी मांग कर दी कि जातियों की गिनती फिर से हो। हालांकि उनकी जाति का आंकड़ा लगभग उतना है, जितना उनके पिता दिवंगत रामविलास पासवान किया करते थे। फिर भी उन्होंने विरोध किया है तो ऐसा लग रहा है कि उनकी सहयोगी भाजपा की ओर से इसकी कोई योजना बनी है, जिसके तहत यह मांग उठी है क्योंकि भाजपा के नेता सबसे ज्यादा यह कह रहे हैं कि लोगों को घरों तक गिनती करने वाले नहीं गए। भाजपा के एक दूसरे सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने भी संख्या पर सवाल उठाया। उनकी जाति कोईरी की आबादी सिर्फ 4.27 फीसदी बताई गई है, जबकि कुशवाहा नेताओं का दावा सात से आठ फीसदी आबादी का रहा है। मल्लाह नेता मुकेश सहनी की शिकायत है कि मल्लाह की सभी उपजातियों की गिनती अलग अलग की गई, जबकि बाकी जातियों में उपजातियों की गिनती अलग नहीं हुई। सवर्णों की चारों जातियों- भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ के नेताओं का कहना है उनकी संख्या जान-बूझकर कम बताई गई है। आने वाले दिनों में बिहार में यह विवाद बढ़ेगा।