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केंद्र के फैसले से कश्मीर में बढ़ी अनिश्चितता

केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल की शक्तियों में इजाफा कर दिया है। अब उप राज्यपाल को दिल्ली के उप राज्यपाल की तरह अधिकारियों के तबादले और उनकी प्रतिनियुक्ति का अधिकार होगा। राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस तरह के फैसले से राज्य में अनिश्चितता बढ़ गई है। दो पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने इस पर सवाल उठाया है और कहा कि चुना हुई सरकार की सारी शक्तियां छीन ली गई हैं। अब छोटे से छोटे काम के लिए भी चुने हुए मुख्यमंत्री को एलजी के सामने भीख मांगनी होगी। इस पूरे विवाद से यह सवाल उठ रहा है कि क्या केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं बहाल करने जा रही है? क्या जम्मू कश्मीर चुनाव के बाद दिल्ली की तरह अर्ध राज्य बनेगा, जिसमें सारी ताकत उप राज्यपाल के हाथ में होगी?

यह सवाल इसलिए है क्योंकि केंद्र सरकार ने उप राज्यपाल की शक्तियां बढ़ाई हैं। अगर जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो गया तो उप राज्यपाल का पद नहीं रहेगा। फिर राज्यपाल रहेगा और उस पर इन बदलावों का कोई असर नहीं होगा। वह किसी भी दूसरे राज्यपाल की तरह होगा और तब सारे अधिकार राज्य की चुनी हुई सरकार के हाथ में रहेंगे। केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले उप राज्यपाल के अधिकार बढ़ा दिए हैं इसका साफ मतलब है कि चुनाव के तुरंत बाद सरकार तो बन जाएगी लेकिन जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल नहीं होगा। दूसरी बात यह भी स्पष्ट हो रही है कि भाजपा ने राज्य में अपनी सरकार बनने की उम्मीद खो दी है या उसकी उम्मीद कम हो गई है। पहले लग रहा था कि भाजपा की केंद्र सरकार ने राज्य में परिसीमन से लेकर आरक्षण तक के जितने प्रयोग किए हैं वह राज्य में अपनी सरकार बनाने पहला हिंदू मुख्यमंत्री बनाने के लिए किए हैं। लेकिन अब उप राज्यपाल के अधिकार बढ़ाने से लग रहा है कि भाजपा की अपनी सरकार बनने की उम्मीद नहीं रही।

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