कांग्रेस ने बड़ी मुश्किल से केंद्रीय राजनीति का अपना झगड़ा सुलझाया है। गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल आदि कई नेता छोड़ कर गए तब जाकर जी-23 की कहानी खत्म हुई है। हालांकि अब भी कांग्रेस कार्य समिति के गठन के बाद फिर विवाद होने की संभावना से इनकार नहीं है लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष चुने जाने के बाद मामला ठंडा पड़ा है और इसी बीच राज्यों में कांग्रेस का विवाद शुरू हो गया है। महाराष्ट्र से लेकर हरियाणा और राजस्थान से लेकर छत्तीसगढ़ तक कांग्रेस के अंदर विवाद है। पार्टी की ओर से जिम्मेदार नेता इसे सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही है। इसका एक कारण यह भी है कि अध्यक्ष बनने के आठ महीने बाद तक खड़गे ने अपनी टीम नहीं बनाई है। कांग्रेस को जितनी जल्दी हो केंद्रीय टीम बनानी चाहिए ताकि पदाधिकारियों की जिम्मेदारी तय हो और उनकी ऑथोरिटी भी बहाल हो।
कांग्रेस ने पिछले दिनों शक्ति सिंह गोहिल को गुजरात प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया तो उनकी जगह दिल्ली और हरियाणा के प्रभारी के तौर पर दीपक बाबरिया को नियुक्त किया। पहले दिन से इसे कामचलाऊ नियुक्ति माना जा रहा है। तभी जब बाबरिया हरियाणा की पहली मीटिंग करने पहुंचे तो किसी नेता ने उनको भाव नहीं दिया। उलटे बैठक में गुटबाजी खुल कर सामने आ गई। प्रदेश में सब कुछ भूपेंदर सिंह हुड्डा के हवाले है लेकिन बाबरिया की बैठक में कुमारी शैलजा, किरण चौधरी और रणदीप सुरजेवाला के समर्थक नारेबाजी करते रहे। मीटिंग के बीच से ही कुमारी शैलजा उठ कर चली गईं। हालांकि उन्होंने कहा कि उनका कोई अन्य कार्यक्रम पहले से तय था।
उधर छत्तीसगढ़ में और दिलचस्प घटनाक्रम देखने को मिला है। कुमारी शैलजा वहां के प्रभारी हैं। पिछले दिनों वहां के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम दिल्ली आए थे तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मिले और उसके बाद रायपुर लौटने पर उन्होंने संगठन में बदलाव कर दिया। छह पदाधिकारियों की नियुक्ति कर दी। इस पर विवाद हुआ तो कुमारी शैलजा ने उनके द्वारा की गई नियुक्तियों को रद्द किया। सोचें, जिस राज्य में चार महीने में चुनाव होने वाला है वहां इस तरह की गड़बड़ी का चुनाव पर क्या असर होगा।