कांग्रेस पार्टी के साथ हाल के दिनों में एक समस्या यह हो गई है कि वहां जिसको सत्ता मिल जा रही है वही आलाकमान हो जा रहा है। पिछले एक दशक में यह कई राज्यों में देखने को मिला है। ताजा मामला कर्नाटक का है। वहां के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया आलाकमान की तरह बरताव कर रहे हैं। वे खुद ही ऐलान कर रहे हैं कि मुख्यमंत्री पद पर कोई वैकेंसी नहीं है और वे पूरे पांच साल तक पद पर बने रहेंगे। प्रादेशिक पार्टियों के सुप्रीमो जब मुख्यमंत्री बनते हैं तब वे तो ऐसा दावा कर सकते हैं लेकिन कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टी का कोई मुख्यमंत्री ऐसा नहीं कह सकता है क्योंकि वहां कभी भी वैकेंसी क्रिएट की जा सकती है। भाजपा में तो अब भी यह स्थिति है लेकिन कांग्रेस में ऐसा नहीं है।
राहुल गांधी न तो सिद्धारमैया को समझा पा रहे हैं और न उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को। तभी ऐसा लग रहा है कि कर्नाटक का मामला छत्तीसगढ़ की दिशा में बढ़ रहा है। कांग्रेस 15 साल के बाद 2018 में छत्तीसगढ़ में सत्ता में आई थी और भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। लेकिन सरकार के ढाई साल पूरा करते ही हंगामा शुरू हो गया और टीएस सिंहदेव ने दावा किया कि ढाई साल के बाद उनको मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया गया था। दोनों ने इस विवाद में दिल्ली में समर्थक विधायकों की परेड कराई। बघेल भारी पड़े और वे सीएम बने रहे। बाद में 2023 के चुनाव से ठीक पहले टीएस सिंहदेव को उप मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन कांग्रेस वहां चुनाव हार कर सत्ता से बाहर हो गई। कर्नाटक में सीएम और डिप्टी सीएम में तालमेल नहीं बना तो वहां के नतीजे भी छत्तीसगढ़ की तरह आ सकते हैं। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं को इसका अंदाजा है।