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दिल्ली में चुनावों पर ग्रहण

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दिल्ली में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं लेकिन उससे पहले राज्य में होने वाले कई छोटे छोटे चुनावों पर ग्रहण लगा हुआ है। दिल्ली और आसपास के राज्यों खास कर हरियाणा की राजनीति का मूड बताने वाले डूसू यानी दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के चुनाव की गिनती रोक दी गई है। चुनाव हो गया है लेकिन नतीजे अभी नहीं आएंगे। इस बीच दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति की एक खाली सीट के लिए चुनाव हुआ तो आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने उसका बहिष्कार कर दिया। अकेले लड़ कर भाजपा उस चुनाव में जीत गई। अब आप ने इसे अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है।

दूसरी ओर भाजपा ने एक सीट का चुनाव होने के बाद स्थायी समितियों के गठन के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है। इससे ऊपर दिल्ली में मेयर का चुनाव नहीं हो रहा है। मौजूदा मेयर आम आदमी पार्टी की शैली ओबेरॉय हैं, जिनका कार्यकाल खत्म हो गया है। लेकिन जब तक चुनाव नहीं होता है तब तक वे मेयर की जिम्मेदारी निभा रही हैं। कुल मिला कर राजधानी दिल्ली में सरकार के कामकाज के साथ साथ राजनीति में भी सब कुछ तदर्थ हो गया है।

सबसे पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव की बात करें तो एक बड़ी हैरान करने वाली तस्वीर सामने आएगी। छात्र संघ के चुनाव प्रचार में अंधाधुंध खर्च और पूरी दिल्ली में होर्डिंग, पोस्टर लगाने का मामला हाई कोर्ट में पहुंच गया। हाई कोर्ट ने दिवारों की सफाई, होर्डिंग, पोस्टर हटाने और इस पर होने वाला खर्च प्रत्याशियों से वसूलने का आदेश दिया। इतना सब होने के बावजूद अदालत ने चुनाव पर रोक नहीं लगाई, बल्कि चुनाव के बाद वोटों की गिनती पर रोक लगा दी।

अब दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के चुनाव के वोटों की गिनती 21 अक्टूबर को होगी। इससे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और दूसरे जानकार भी हैरान हैं क्योंकि हर साल चुनाव इसी तरह से होता है और कभी कोई अदालत में चुनौती नहीं देता है। दूसरे चुनाव हो गया तो नतीजे रोकने का क्या मतलब है? इसके पीछे साजिश थ्योरी देखने वाले इस पूरे घटनाक्रम को हरियाणा की राजनीति से जोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि इस बार पहले दिन से कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के रौनक खत्री के चुनाव जीतने की संभावना थी। आरएसएस के छात्र संघ एबीवीपी के तुषार चौधरी पिछड़ रहे थे। तभी चुनाव को चुनौती देकर इसे इसे रूकवाने या नतीजे टालने का उपाय किया गया।

इसी तरह दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय का कार्यकाल इस साल अप्रैल में खत्म हो चुका है। लेकिन पांच महीने से मेयर का चुनाव टल रहा है। आम आदमी पार्टी और भाजपा के टकराव की वजह से चुनाव नहीं हो पा रहा है। नगर निगम के चुनाव में 105 सीट जीतने वाली भाजपा 11 पार्षदों को तोड़ कर अपनी संख्या 115 पहुंचा चुकी है। दूसरी ओर 134 सीट जीतने वाली आप की संख्या 124 हो गई है।

मेयर के चुनाव में जम कर क्रॉस वोटिंग की संभावना है इसलिए चुनाव टल रहे हैं। स्थायी समिति के चुनाव में भी इसी तरह का नाटक हुआ। क्रॉस वोटिंग की चिंता में आप की मेयर चुनाव टाल रही थीं लेकिन उप राज्यपाल ने नगर निगम आयुक्त को आदेश देकर चुनाव करा दिया। इसमें अकेले लड़ कर भाजपा जीत गई और स्थायी समिति में उसका बहुमत हो गया। अब यह मामला भी अदालत पहुंचने वाला है।

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