दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर जो आकलन आ रहे हैं और पार्टियों की जो फीडबैक है उनका लब्बोलुआब यह है कि अपने दम पर भाजपा कोई कमाल करने नहीं जा रही है। यह भी आकलन है कि अरविंद केजरीवाल और उनकी सरकार के प्रति लोगों के मन में कोई बहुत प्यार या समर्थन का भाव नहीं है लेकिन वे मान रहे हैं कि उनके सामने कोई अच्छा विकल्प नहीं है। यह मानने का कारण मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होना भी है। गौरतलब है कि भाजपा और कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं पेश किया गया है। तभी ऐसा लग रहा है, जैसे मुख्यमंत्री पद के लिए अकेले केजरीवाल लड़ रहे हैं। उनसे लोगों की शिकायतें हैं, वादे पूरे नहीं होने की नाराजगी भी है और भविष्य के लिए किसी बड़े बदलाव की उम्मीद भी नहीं है फिर भी हर आकलन में उनके जीतने की बात कही जा रही है तो उसका कारण यह है कि भाजपा अपने दम पर बहुत आगे नहीं जा रही है।
भाजपा को औसतन 35 फीसदी वोट दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिलते हैं। वह वोट स्थायी है। पिछली बार उसको 38 फीसदी वोट इसलिए मिल गए थे क्योंकि आम आदमी पार्टी को हराने की सोच में कांग्रेस के कुछ समर्थकों ने भाजपा को वोट किया था। तभी कांग्रेस 2015 के साढ़े नौ फीसदी से घट कर 2020 में सवा चार फीसदी वोट पर आ गई थी। इस बार अगर वह वोट कांग्रेस की ओर लौटता है तो भाजपा फिर 35 फीसदी के आसपास रहेगी। इससे जाहिर हो रहा है कि भाजपा का वोट शेयर नहीं बढ़ रहा है। फिर भी भाजपा के दिल्ली प्रदेश के नेता जो जीत के दावा कर रहे हैं उसके दो आधार हैं। पहला तो यह है कि लगातार 10 साल के शासन से केजरीवाल के खिलाफ एंटी इन्कम्बैंसी है और दूसरा, त्रिकोणात्मक लड़ाई है, जिसका फायदा भाजपा को मिलेगा। मुश्किल यह है कि मुफ्त में वस्तुएं और सेवाएं बांटने की राजनीति से सत्तारूढ़ दलों के चुनाव जीतने का ट्रेंड इन दिनों दिख रहा है। हाल के दिनों में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में यह साफ दिखा है।
तभी भाजपा की जीत का एकमात्र आधार त्रिकोणात्मक लड़ाई का है। त्रिकोणात्मक लड़ाई का फायदा जरूर भाजपा को होता है लेकिन वही, जहां तीसरी पार्टी बहुत मजबूती से लड़े और वोट काटे। दिल्ली में भाजपा को इसका फायदा 2013 के चुनाव में मिला था, जब सत्तारूढ़ कांग्रेस के खिलाफ तीसरी पार्टी के तौर पर आम आदमी पार्टी बहुत मजबूती से चुनाव लड़ी थी। तब कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को 24 और 29 फीसदी वोट मिले थे और उसी वजह से भाजपा 32 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। सो, इस चुनाव में अगर भाजपा अपने औसतन 35 फीसदी वोट पर टिकी रहती है तो उसके जीतने की संभावना तभी होगी, जब कांग्रेस को 20 फीसदी तक वोट आए। कांग्रेस भले बहुत जोर लगा कर लड़ रही है लेकिन इस चुनाव में 20 फीसदी वोट की संभावना नहीं दिख रही है। कांग्रेस को 20 फीसदी वोट तभी मिल सकता है, जब मुस्लिम पूरी तरह से आप को छोड़ दें। अगर कांग्रेस 15 फीसदी वोट भी प्राप्त करती है तो यह कांग्रेस की बड़ी उपलब्धि होगी लेकिन इससे अरविंद केजरीवाल की पार्टी नहीं हारेगी। पिछले दो चुनाव से उनकी पार्टी को विधानसभा में औसतन 54 फीसदी के करीब वोट मिला है।