आम आदमी पार्टी की जब दिल्ली में सरकार थी तब कोई उसे गंभीरता से नहीं लेता था। भारतीय जनता पार्टी, उसकी केंद्र सरकार और उप राज्यपाल ने यह धारणा बना दी थी कि आप सरकार के हाथ में कुछ भी नहीं है और दिल्ली की असली सरकार उप राज्यपाल हैं। अरविंद केजरीवाल सरकार के सभी फैसलों पर उप राज्यपाल या तो रोक लगा देते थे या अपने हिसाब से मंजूरी देते थे।
केजरीवाल सरकार को कार्यालय के लिए पेन, पेंसिल और कागज खरीदने की फाइल भी उप राज्यपाल के पास भेजनी होती थी। फिर भी पिछले 10 साल में दिल्ली के किसी निजी स्कूल की फीस बढ़ाने की हिम्मत नहीं हुई और न दिल्ली में बिजली आपूर्ति की सेवा दे रही दोनों कंपनियों को अपने शुल्क या कीमत बढ़ाने की हिम्मत हुई।
फीस बढ़ोतरी पर सरकार की बेबसी साफ
लेकिन जैसे ही आम आदमी पार्टी की सरकार आई और दिल्ली में भाजपा की सरकार बनी, जिसकी केंद्र सरकार है, जिसके उप राज्यपाल हैं, जिसके पास एमसीडी भी है और जो सबसे शक्तिशाली है, उसके होते दिल्ली के स्कूलों ने फीस बढ़ानी शुरू कर दी और बिजली के शुल्क भी बढ़ने लगे! हैरानी है कि इतनी शक्तिशाली भाजपा स्कूलों को फीस बढ़ाने से नहीं रोक पा रही है। स्कूलों ने न सिर्फ फीस बढ़ाई है, बल्कि फीस नहीं चुकाने वालों को स्कूल से निकाल दिया है।
स्कूलों के बाहर प्रदर्शन करने वालों के साथ धक्कामुक्की हुई है। दिल्ली हाई कोर्ट ने भी अभिभावकों को बढ़ी हुई फीस का आधा हिस्सा जमा कराने को कहा है। स्कूलों को रोकने में नाकाम दिल्ली सरकार कह रही है कि वह एक अध्यादेश लाकर फीस बढ़ोतरी रोकेगी। सवाल है कि ‘कमजोर’ केजरीवाल को तो अध्यादेश लाने की जरुरत नहीं पड़ी, फिर मजबूत भाजपा सरकार को ऐसी जरुरत क्यों पड़ रही है?
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