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कृत्रिम बारिश नहीं करा पाई दिल्ली सरकार

पहले से इस बात का अंदाजा था कि दिल्ली की भाजपा सरकार कृत्रिम बारिश के नाम पर सिर्फ बातें कर रही है। अगर कृत्रिम बारिश करा लेना इतना आसान होता है तो दिल्ली या दूसरे राज्यों में प्रदूषण और पानी की समस्या से निपटने के लिए पहले से ऐसा कराया जाता। सोचें, दिल्ली सरकार ने जुलाई, अगस्त के महीने में जब मानसून अपने चरम पर था और खूब बारिश हो रही थी उस समय कृत्रिम बारिश का फैसला किया था। सरकार की ओर से तारीख तय कर दी गई थी। लेकिन जब चारों तरफ से इसका विरोध हुआ और कहा गया कि जब मानसून की बारिश हो रही है तो ऐसे समय में कृत्रिम बारिश का क्या मतलब है। तब जाकर दिल्ली सरकार ने फैसला टाला।

उस समय कहा गया कि दिवाली के बाद प्रदूषण बढ़ने पर कृत्रिम बारिश कराई जाएगी। लेकिन दिवाली के बाद जब वायु गुणवत्ता सूचकांक, एक्यूआई खतरे के निशान तक पहुंच गई तो सरकार कह रही है कि वह कृत्रिम बारिश नहीं करा सकती है क्योंकि उसके लिए आकाश में प्राकृतिक बादल का होना जरूरी है। क्या यह बात दिल्ली के नेताओं और अधिकारियों को पता नहीं थी? अगर पता थी तो क्या वे यह मान रहे थे कि दिवाली के अगले दिन या उसके आगे के दिनों में दिल्ली के आकाश में बादल छाए रहेंगे? अगर वे ऐसा सोच रहे थे इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है कि कोई मानसून की वापसी के तुरंत बाद कार्तिक के महीने में बादल छाने के बारे में सोचे! ऐसा लग रहा था कि मानसून के समय भी दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश कराने में सक्षम नहीं थी और अब भी तकनीकी रूप से इसमें सक्षम नहीं है। लेकिन दिल्ली के लोगों को बरगलाने और दिवाली में पटाखों की मंजूरी के लिए इसका प्रचार किया गया।

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