अच्छा होता कि दिल्ली में अभी चुनाव हो जाता क्योंकि अब राज्य की नई मुख्यमंत्री आतिशी जनता का कोई काम नहीं करेंगी। वे सिर्फ अरविंद केजरीवाल के प्रति स्वामीभक्ति साबित करने का काम करेंगी। वे सारे समय इसी उधेड़बुन में रहेंगी कि अब कैसे अपने को ज्यादा स्वामीभक्त साबित करें। उन्हें चिंता रहेगी कि कोई दूसरा उनसे ज्यादा स्वामीभक्ति का प्रदर्शन न कर दे। यह इसलिए जरूरी होगा क्योंकि अगले साल फरवरी के चुनाव में अगर आम आदमी पार्टी जीतती है तो केजरीवाल फिर से आतिशी को अपनी सरकार में मंत्री बनाते हैं या नहीं या मौजूदा मंत्रिमंडल में से किसको रखते हैं, किसको निकालते हैं, इसका फैसला इसी आधार पर होगा कि किसने स्वामीभक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन कितने फूहड़ तरीके से किया।
अभी तक इस मामले में आतिशी ने लीड ले रखी है। वे मुख्यमंत्री कार्यालय में उस कुर्सी पर नहीं बैठीं, जिस पर अरविंद केजरीवाल बैठते थे। उसे खाली रख कर वे बगल में दूसरी कुर्सी पर बैठीं। इसके बाद आम आदमी पार्टी के संस्थापक प्रशांत भूषण ने उन्हें सलाह दी कि वे केजरीवाल की चप्पल कुर्सी पर रख सकती हैं। किसी ने नीली कमीज भी कुर्सी पर रखने की सलाह दी। हैरानी नहीं होगी अगर आगे ऐसा कुछ हो जाए। बहरहाल, कुर्सी वाले तमाशे के बाद मंगलवार को आतिशी कनॉट प्लेस में केजरीवाल के पसंदीदा हनुमान मंदिर में गईं और वहां केजरीवाल को फिर से सीएम बनाने की मन्नत मांगी। उनकी पार्टी के नेता अभी कुर्सी वाले तमाशे की ही काट नहीं खोज पाए थे तब तक उन्होंने हनुमान जी वाला दांव चल दिया। आगे भी स्वामीभक्ति साबित करने की प्रतिस्पर्धा चलती रहेगी।