महाराष्ट्र में महायुति यानी भाजपा, शिव सेना और एनसीपी का गठबंधन अपने वोट आधार को लेकर पूरे भरोसे में है और उससे ज्यादा इस गठबंधन को लोक लुभावन फैसलों और वादों पर भरोसा है। आखिर चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने लड़की बहिन योजना के तहत महिलाओं कोस डेढ़ हजार रुपए महीना नकद बांटना शुरू कर चुके हैं। रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुंबई में गठबंधन का घोषणापत्र जारी किया तो उसमें कई और बड़े वादे किए गए। गठबंधन ने कहा कि जीते तो लड़की बहिन योजना को डेढ़ हजार से बढ़ा कर 21 सौ रुपया महीना करेंगे। सरकार 25 लाख नई नौकरियां देगी और किसानों की कर्ज माफी का भी वादा किया गया है।
हालांकि वोट आधार और लोक लुभावन घोषणाओं के बावजूद महायुति के सामने बड़ी मुश्किल है। पिछले तीन दिन में महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव होने के संकेत मिले हैं। महायुति की पार्टियों के बीच एकता में भी दरार दिखी है। एनसीपी के नेता अजित पवार ने बहुत साफ शब्दों में कह दिया कि उनको भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ कबूल नहीं हैं। आदित्यनाथ के ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ के नारे को उन्होंने खारिज किया और कहा कि महाराष्ट्र इस तरह का राज्य नहीं है। अजित पवार ने कहा कि किसी और राज्य का यह एजेंडा हो सकता है लेकिन महाराष्ट्र सबको साथ लेकर चलने वाला राज्य है। इतना ही नहीं अजित पवार ने अपने चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नहीं बुलाया। खबर है कि उन्होंने मोदी को बारामती में आने से रोक दिया। बाद में उन्होंने कहा कि बारामती में परिवार की लड़ाई चल रही है इसलिए उन्होंने मोदी को नहीं बुलाया।
खबर है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने भी ‘कटेंगे तो बटेंगे’ वाली बात पर अजित पवार की लाइन का समर्थन किया। वे भी नहीं चाहते हैं कि इस मसले पर महाराष्ट्र में राजनीति हो। भाजपा की दोनों सहयोगी पार्टियां विभाजनकारी एजेंडे को इनकार कर रही हैं। दोनों को सेकुलर वोट की उम्मीद है। उससे ज्यादा महाराष्ट्र की पारंपरिक राजनीति में दोनों का यकीन है। कहा जा रहा है कि शिव सेना और एनसीपी के नेता यानी एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ साथ दोनों पार्टियों के बाकी नेता भी भाजपा के एजेंडे से बहुत सहज नहीं हैं। इस बीच भाजपा की नेता पूनम महाजन के इंटरव्यू से पार्टी में अलग हलचल मची है। बताया जा रहा है कि उनको मनाने का प्रयास चल रहा है।
कुछ समय पहले रिश्ते में उनकी बहन पंकजा मुंडे नाराज थीं तो उनको एमएलसी बना कर मनाया गया। उधर कारोबारी जगत में भी भाजपा की राजनीति को लेकर सहजता नहीं है। माना जा रहा है कि राहुल गांधी ने एकाधिकार बनवाने वाली नीति के खिलाफ लेख लिखा तो उसे मुंबई में बड़ा समर्थन मिला। छोटे और मंझोले कारोबार कांग्रेस और उसके गठबंधन का समर्थन कर रहे हैं। मराठा आरक्षण और ओबीसी से टकराव का मुद्दा अलग भाजपा के लिए मुश्किल पैदा किए हुए है। सबको पता है कि दो गठबंधन की छह पार्टियों के बीच सीटें बंटेंगी और कोई भी पार्टी बहुमत के आसपास भी नहीं होगी। इसलिए चुनाव बाद की राजनीतिक संभावनाओं को लेकर भी दुविधा बनी हुई है।