जिस तरह से भाजपा ने महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे पर दबाव बनाया है कि वे अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करें वैसे ही बिहार में उपेंद्र कुशवाहा के ऊपर दबाव बनाया है। बताया जा रहा है कि भाजपा नेता चाहते हैं कि कुशवाहा अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल का विलय कर लें। लेकिन कुशवाहा इसके लिए तैयार नहीं हैं। पहले भी 2014 में उन्होंने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बना कर राजनीति की थी और तीन सीटें जीत कर नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में मंत्री बने थे। पिछले लोकसभा चुनाव के समय वे अलग हो गए और नया गठबंधन बना कर चुनाव लड़े, जिसमें उनकी पार्टी से कोई नहीं जीत पाया। पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2020 के बाद उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जनता दल यू में कर दिया।
जब नीतीश कुमार वापस राजद के साथ चले गए तो उपेंद्र कुशवाहा अलग हो गए और सीधे भाजपा में जाने की बजाय उन्होंने अपनी नई पार्टी बना ली, जिसे एनडीए में जगह मिल गई है। वे 18 जुलाई को दिल्ली में हुई एनडीए की बैठक में शामिल हुए थे। भाजपा के प्रदेश नेताओं की ओर से उनको वहीं दलील दी जा रही है, जो महाराष्ट्र में शिंदे गुट को दी जा रही है। उनको समझाया जा रहा है कि वे अगर अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ते हैं तो जीतने की संभावना कम हो जाएगी, जबकि भाजपा के चुनाव चिन्ह पर वे आसानी से जीत जाएंगे। दो या तीन सीट पर भाजपा उनकी पसंद का उम्मीदवार देने को तैयार है। भाजपा की ओर से इस तरह का प्रस्ताव पहले चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास को दिया गया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया। उधर नीतीश कुमार ने जीतन राम मांझी को भी अपनी पार्टी विलय करने का प्रस्ताव दिया था, जिससे नाराज होकर उन्होंने उनका गठबंधन छोड़ दिया और भाजपा के साथ चले गए। सो, बिहार की कोई भी छोटी पार्टी विलय के लिए तैयार नहीं है। सब तालमेल करके लड़ना चाहते हैं ताकि विधायकों, सांसदों पर अपना नियंत्रण हो और कभी भी उनके साथ गठबंधन कर सकें।