विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की पार्टियां कुछ राज्यों में रणनीतिक रूप से अलग अलग लड़ने का फैसला कर सकती हैं तो कुछ राज्यों में तालमेल होगा लेकिन सीटों का बंटवारा बड़ी उलटफेर वाला होगा। यह ऐसे राज्यों में होगा, जहां गठबंधन में नई पार्टियां जुड़ी हैं। बड़े राज्यों के लिहाज से देखें तो बिहार और महाराष्ट्र में गठबंधन में सहयोगी पार्टियां बढ़ी हैं और उनके बीच सीट बंटवारे पर बड़ा मोलभाव होगा। बिहार में राजद, जदयू और कांग्रेस एक बार 2015 में विधानसभा चुनाव एक साथ लड़े थे। लेकिन उसके बाद जदयू दोबारा एनडीए के साथ चली गई थी। अब ये तीनों पार्टियां फिर एक साथ हैं और इनके अलावा तीनों कम्युनिस्ट पार्टियां- सीपीएम, सीपीआई और सीपीआईएमएल भी साथ में हैं।
ध्यान रहे बिहार में राजद, जदयू और कांग्रेस दूसरी बार एक साथ सरकार में हैं लेकिन इन तीनों पार्टियों ने कभी एक साथ लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा है। सो, 2015 के विधानसभा चुनाव को सीट बंटवारे का फॉर्मूला बनाया जा सकता है। उस समय राजद और जदयू दोनों एक-एक सौ सीटों पर लड़े थे और कांग्रेस 43 सीटों पर लड़ी थी। बिहार में विधानसभा की 243 और लोकसभा की 40 सीटें हैं। इस लिहाज से एक लोकसभा सीट में छह विधानसभा सीटें आती हैं। इस लिहाज से कांग्रेस का दावा सात सीटों का बनता है और राजद व जदयू का 16-16 सीटों का बनता है। लेकिन अगर कम्युनिस्ट पार्टियों को सीट देनी होगी तो इन तीनों बड़ी पार्टियों को समझौता करना होगा। अगर पप्पू यादव गठबंधन में आते हैं तो उनके लिए भी सीट छोड़नी होगी।
इसी तरह महाराष्ट्र में पिछले 20 साल से ज्यादा समय से कांग्रेस और एनसीपी एक साथ चुनाव लड़ते रहे हैं। यह पहली बार है, जब उनके गठबंधन में कोई तीसरी पार्टी शामिल हुई है। शिव सेना का उद्धव ठाकरे गुट उनके साथ है। तीनों पार्टियों ने महा विकास अघाड़ी बना कर राज्य में सरकार चलाई थी लेकिन वह चुनाव बाद का गठबंधन था। पिछली बार शिव सेना ने भाजपा के साथ गठबंधन में 22 सीटों पर चुनाव लड़ा था, एनसीपी का दावा भी 22 सीटों पर है, जबकि कांग्रेस का 25 सीटों पर दावा है। सो, राज्य की 48 लोकसभा सीटों का बंटवारा तीन पार्टियों के बीच आसान नहीं होगा। झारखंड में भी ‘इंडिया’ की चार पार्टियों- जेएमएम, कांग्रेस, राजद और जदयू के बीच सीट बंटवारे में नए सिरे से मोलभाव होगा।