विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ के नेताओं ने मुंबई की बैठक में सीट बंटवारे पर चर्चा की। पहले दिन यानी 31 अगस्त को हुई अनौपचारिक बैठक में भी इस बारे में बातचीत हुई और एक सितंबर की औपचारिक बैठक में भी इस पर चर्चा हुई। चर्चा के बावजूद इस पर कोई फैसला नहीं हुआ क्योंकि कई राज्यों का मामला उलझा हुआ है। तभी बैठक के बाद जो प्रस्ताव मंजूर हुआ और जिसे मीडिया के सामने रखा गया उसमें कहा गया कि विपक्षी पार्टियां ‘जहां तक संभव होगा वहां गठबंधन करेंगी’। इसका मतलब है कि कुछ जगहों पर सीटों का तालमेल नहीं भी हो सकता है। गठबंधन रहेगा, पार्टियां ‘इंडिया’ में बनी रहेंगी लेकिन चुनाव में सीटों का तालमेल करने की बजाय सीधा या दोस्ताना मुकाबला भी करेंगी।
ऐसा जिन राज्यों में होगा उनमें सबसे अहम राज्य केरल है। कांग्रेस और लेफ्ट के बीच परफेक्ट तालमेल है। सीताराम येचुरी और डी राजा दोनों गठबंधन के साथ हैं। लेकिन केरल में दोनों के बीच तालमेल नहीं होगा। ध्यान रहे केरल की 20 में से 19 सीटें कांग्रेस के गठबंधन वाले यूडीएफ के पास हैं। सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ को सिर्फ एक सीट मिली है। सो, अगर दोनों के बीच गठबंधन होता है तो कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों को अपनी जीती हुई नौ सीटें सत्तारूढ़ लेफ्ट गठबंधन के लिए छोड़नी होगी। दोनों गठबंधन इतने मजबूत हैं की वे इसके लिए तैयार नहीं होंगे। दूसरे, अगर दोनों एक हो जाते हैं तो मुख्य विपक्षी भाजपा होगी, जो अभी हाशिए की पार्टी है, लेकिन कांग्रेस-लेफ्ट के तालमेल के बाद बड़ी ताकत बन सकती है।
ऐसे ही पश्चिम बंगाल में भी तालमेल मुश्किल है। वहां लेफ्ट पार्टियां ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ नहीं जाना चाहती हैं। उनके पास वोट आधार नहीं है लेकिन फिर भी नेताओं को लगता है कि जब भी ममता बनर्जी की पार्टी कमजोर होगी और भाजपा जिस तरह से मजबूत हो रही है उसमें आगे लेफ्ट के लिए मौका बन सकता है। दूसरे, एक रणनीतिक स्थिति यह है कि अगर त्रिकोणात्मक मुकाबला नहीं होता है तो हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण से भाजपा को फायदा हो सकता है। सो, कांग्रेस और लेफ्ट मिल कर मुकाबले को त्रिकोणात्मक बना सकते हैं ताकि भाजपा को रोका जा सके।
आम आदमी पार्टी को लेकर भी संशय आगे तक कायम रहेगा। कांग्रेस अंदरखाने दिल्ली और पंजाब में तालमेल का मन बना रही है लेकिन अरविंद केजरीवाल की पार्टी इन दो राज्यों से बाहर भी सीट चाहती है। दूसरे, इन दोनों राज्यों में केजरीवाल की पार्टी की ओर से कांग्रेस को जितनी सीटों का प्रस्ताव दिया जाना है उसे देखते हुए लग नहीं रहा है कि कांग्रेस आसानी से तैयार होगी। दिल्ली में कांग्रेस के कुछ नेता तीन सीट पर राजी होने की संभावना देख रहे हैं लेकिन आप की ओर से अधिकतम दो सीटों का प्रस्ताव दिया जाना है। इसी तरह पंजाब में कांग्रेस आठ सीट लड़ना चाहती है, जबकि आप चाहती है कि वह आठ सीट लड़े।