यह बहुत दिलचस्प संयोग है कि विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ की हर बैठक की तारीख एक बार जरूर टलती है। सवाल है कि पार्टियां पहले ही आपस में बात करके सहमति से तारीख क्यों नहीं तय करती हैं तो एक बार तारीख की घोषणा होने के बाद उसे बदला जाता है? कहीं यह कोई टोटका तो नहीं है? हो सकता है कि विपक्षी पार्टियों को लगता हो कि बैठक की तारीख बदलने से हर बैठक पहले से बेहतर हो रही है, ज्यादा पार्टियां जुट रही हैं और बैठक सफल हो रही है तो हर बार तारीख बदली जाए?
विपक्षी गठबंधन की पहली बैठक बिहार में हुई थी। पटना में होने वाली बैठक पहले 12-13 जून को होने वाली थी, लेकिन उस समय राहुल गांधी अमेरिका के दौरे पर थे और बैठक में शामिल नहीं हो सकते थे। सो, इसे 10 दिन आगे बढ़ाया गया और एक दिन की बैठक 23 जून को हुई। उस बैठक में तय किया गया कि अगली बैठक 12-13 जुलाई को शिमला में होगी। लेकिन फिर किसी कारण से बैठक को टालने का फैसला हुआ। शिमला की बजाय बैठक बेंगलुरू में हुई और 17-18 जुलाई को हुई।
बेंगलुरू की बैठक में तय हुआ कि अगली बैठक संसद के मानसून सत्र के बाद मुंबई में होगी। थोड़े दिन के बाद बताया गया कि मुंबई में 25 और 26 अगस्त को दो दिन की बैठक होगी। लेकिन फिर इसकी तारीख बदली गई और अब कहा गया है कि बैठक 31 अगस्त और एक सितंबर को होगी। वहां तय होगा कि अगली बैठक कहां होगी। उस पर नजर रखनी होगी कि बैठक की तारीख बदलती है या नहीं।