राष्ट्रीय लोकदल के नेता और राज्यसभा सांसद जयंत चौधरी ने दिल्ली सेवा बिल पर हुई वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया था। वे पटना में हुई विपक्षी पार्टियों की पहली बैठक में भी नहीं शामिल हुए थे। हालांकि दूसरी बैठक में वे बेंगलुरू गए थे लेकिन अब सरकार औऱ विपक्ष के बीच शक्ति परीक्षण के दौरान वे वोटिंग से गैरहाजिर रहे। इससे उनके प्रति संदेह बढ़ा है। विपक्षी गठबंधन की पार्टियों ने उनकी निष्ठा को लेकर सवाल खड़े किए हैं। हालांकि वे और उनकी पार्टी केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर हमले करते हैं और सोशल मीडिया में सरकार के खिलाफ ट्विट वगैरह भी करते हैं लेकिन जहां एक एक वोट महत्व का था और 91 साल के बीमार मनमोहन सिंह व्हीलचेयर पर बैठ कर वोट डालने आए थे वहां एक नौजवान सांसद की गैरहाजिरी सवाल खड़े करती है।
उनके वोट नहीं डालने से एक बार फिर यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या वे विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के साथ हैं या भाजपा के साथ? गौरतलब है कि पिछले कुछ दिनों से इस बात की चर्चा चल रही है कि वे भाजपा के संपर्क में हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपना आधार मजबूत करने के बाद भाजपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर ध्यान दे रही है, जहां जाट वोट एकजुट करने के लिए उसको जयंत चौधरी की जरूरत है। जयंत को भी पता है कि भाजपा के साथ उनका समीकरण बनता है और उसके साथ जीतने की संभावना रहती है। पिछले दो चुनाव से उनकी पार्टी एक भी लोकसभा की सीट नहीं जीत रही है। जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा की ओर से एक सीट का ऑफर दिया जा रहा है और साथ ही राज्यसभा की सीट रखने का भी प्रस्ताव है। लेकिन जयंत की पार्टी कम से कम तीन सीट चाहती है। इससे पहले 2009 में भाजपा के साथ गठबंधन में पार्टी को पांच सीटें मिली थीं और पांचों पर वह जीती थी।