केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने झारखंड यात्रा में विधानसभा चुनाव को लेकर पार्टी की रणनीति पर विचार किया। उन्होंने पार्टी की विस्तारित कार्य समिति की बैठक में संगठन की ताकत और चुनावी मुद्दों पर विचार करने के साथ साथ इस बात पर भी विचार किया कि आदिवासी सीटों पर किस तरह से भाजपा को मजबूत किया जाए। बताया जा रहा है कि पार्टी के दोनों आदिवासी मुख्यमंत्रियों यानी ओडिशा के मोहन चरण मांझी और छत्तीसगढ़ के विष्णुदेव साय के दौरे कराने की योजना बनी है। पार्टी आदिवासी समुदायों में दोनों मुख्यमंत्रियों और राष्ट्रपति के नाम पर नैरेटिव बनाने का प्रयास करेगी। लेकिन इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि पार्टी ने तय किया है कि उसके सभी आदिवासी नेता चुनाव लड़ेंगे और आदिवासी आरक्षित सीटों पर ही चुनाव लड़ेंगे। गौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा राज्य की 28 आदिवासी आरक्षित सीटों में से सिर्फ दो जीत पाई थी और 26 पर हार गई थी।
बाद में बाबूलाल मरांडी पार्टी में वापस लौटे तो उनको विधायक दल का नेता बनाया गया तो भाजपा के आदिवासी विधायकों की संख्या तीन हुई। लेकिन मरांडी आदिवासी आरक्षित सीट से नहीं जीते थे। वे राज धनवार की सामान्य सीट से जीते थे। इस बार कहा जा रहा है कि वे आदिवासियों के लिए आरक्षित दुमका सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। इस सीट से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन विधायक हैं। अगर दुमका से बाबूलाल मरांडी लड़ेंगे तो समूचे संथालपरगना में भाजपा का माहौल बनेगा। इसी तरह पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के अपनी पारंपरिक खरसांवा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है। उनके लड़ने से जमशेदपुर और खूंटी दो लोकसभा क्षेत्रों की 12 सीटों पर असर हो सकता है। बताया जा रहा है कि भाजपा के आदिवासी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव भी विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। वे लोहरदगा सीट से या इस लोकसभा की किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। वे लोहरदगा लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे लेकिन जीत नहीं पाए थे। सिंहभूम सीट से चुनाव हारीं गीता कोड़ा भी विधानसभा का चुनाव लड़ेंगी। उनके लड़ने से कोल्हान की 15 सीटों में भाजपा को फायदा हो सकता है। बहरहाल, बड़े आदिवासी नेताओं को चुनाव लड़ा कर भाजपा एक सकारात्मक मैसेज बनवाएगी।