भोजपुरी फिल्मों के पावर स्टार कहे जा रहे पवन सिंह बिहार की काराकाट सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। उनको भारतीय जनता पार्टी ने पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से टिकट दिया था, जहां से शत्रुघ्न सिन्हा तृणमूल कांग्रेस के सांसद हैं। लेकिन पवन सिंह वहां लड़ने नहीं गए। उन्होंने भाजपा की टिकट लौटा दी। काफी समय तक वे चुप बैठे रहे और उनके सिवान से लेकर आरा तक की सीट से लड़ने की चर्चा होती रही। अंत में वे काराकाट पहुंच गए, जहां राजपूत का वोट सिर्फ एक लाख है। वहां से पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ रहे हैं। वे एनडीए गठबंधन का हिस्सा हैं। उन्होंने बड़ी मेहनत करके यह सीट ली क्योंकि वे एनडीए में रह कर 2014 में इस सीट से चुनाव जीते थे और केंद्र में मंत्री बने थे। लेकिन पवन सिंह के आने से उनका समीकरण बिगड़ता दिख रही है। इस बीच यह सवाल भी उठने लगा है कि आखिर पवन सिंह ने काराकाट सीट क्यों चुनी और उनके पीछे किसकी ताकत है?
ध्यान रहे काराकाट सीट पर कुशवाहा वोट ढाई लाख के करीब है लेकिन उससे ज्यादा सवा तीन लाख वोट यादव का है। तभी विपक्षी गठबंधन की ओर से सीपीआई माले की टिकट से चुनाव लड़ रहे राजाराम कुशवाहा के लिए लड़ाई आसान मानी जा रही थी। लेकिन पवन सिंह के आने से उनकी लड़ाई भी मुश्किल हुई है। इसका कारण यह है कि लालू प्रसाद के परिवार के करीबी दूसरे भोजपुरी स्टार खेसारी लाल यादव काराकाट में पवन सिंह के लिए कैम्प किए हुए हैं। कहा जा रहा है कि वे लालू परिवार की ओर से यादव वोट पवन सिंह को ट्रांसफर कराने के लिए काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि पवन सिंह भाजपा से जुड़े थे और पिछले ही दिनों भाजपा ने उनको पार्टी से निकाला है। तो क्या लालू प्रसाद भाजपा के नेता पवन सिंह को जिताने के लिए काम कर रहे हैं? क्या भाजपा के कई कुशवाहा नेताओं की तरह उनकी भी मंशा किसी तरह से उपेंद्र कुशवाहा को रोकने की है? हालांकि काराकाट में ब्राह्मण, भूमिहार और पासवान की आबादी ढाई लाख के करीब है और डेढ़ लाख के करीब अत्यंत पिछड़ी जातियां हैं। ये अगर एनडीए के साथ एकजुट रहीं तो उपेंद्र कुशवाहा को फायदा हो सकता है।