नरेंद्र मोदी के जितने मंत्री चुनाव लड़ रहे हैं उनकी अलग चिंता है। एक्जिट पोल के नतीजे आने के बाद कई मंत्री नए सिरे से अपने चुनाव जीतने हारने की गणित पर विचार कर रहे हैं। एक्जिट पोल के नतीजों में पूर्ण बहुमत से भाजपा की सरकार बनने का अनुमान जताया गया है। तभी जो मंत्री राज्यसभा में हैं वे आश्वस्त हैं कि उन्हें मौका मिल सकता है। लेकिन जो मंत्री राज्यसभा के सांसद हैं और इस बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं उनको चिंता है कि कहीं वे मौका गंवा न दें। अगर वे लोकसभा का चुनाव हारते हैं तो फिर उनको केंद्र सरकार में शामिल होने का मौका नहीं मिलेगा। हालांकि कुछ अपवाद हैं। जैसे पिछली बार हरदीप सिंह पुरी चुनाव हार गए थे फिर भी मंत्री बन गए। उससे पहले 2014 में तो अरुण जेटली और स्मृति ईरानी दोनों चुनाव हारने के बाद मंत्री बने थे।
बहरहाल, इस बार स्मृति ईरानी की चिंता है। वे अमेठी से तीसरी बार चुनाव लड़ी हैं और लगातार दूसरी बार जीत की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन वहां कांग्रेस ने गांधी परिवार के किसी सदस्य की बजाय किशोरी लाल शर्मा को लड़ाया था और कहा जा रहा है कि उन्होंने अच्छी लड़ाई लड़ी है। इसी तरह ओडिशा का संभलपुर में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की लड़ाई भी मुश्किल बताई जा रही है। हालांकि एक्जिट पोल में ओडिशा में भाजपा में बहुत अच्छा प्रदर्शन करती दिख रही है। इसी तरह राजस्थान की अलवर सीट से चुनाव लड़े केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव भी काटें की टक्कर में फंसे हैं। लगातार राज्यसभा में रहे पीयूष गोयल मुंबई से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके और उनके करीबियों की धुकधुकी बढ़ी हुई है। इसी तरह बिहार की आरा सीट से चुनाव लड़ रहे आरके सिंह भी बहुत नजदीकी मुकाबले में फंसे हैं तो झारखंड की खूंटी सीट से लड़े अर्जुन मुंडा की लड़ाई भी कांटे की बताई जा रही है।