सारे चुनाव नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों की ओर से नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू पर डोरे डाले जाने लगे। विपक्ष की ओर से कहा गया कि वे एनडीए के इन दोनों नेताओं से बात करेंगे और उन्हें भाजपा का साथ छोड़ कर विपक्षी गठबंधन के साथ आने के लिए मनाएंगे। इस बीच जानकार सूत्रों का कहना है कि दोनों पार्टियां बेहतर मोलभाव और सौदेबाजी के विकल्प पर विचार कर रही हैं। जानकार सूत्रों का कहना है कि नीतीश कुमार बिहार छोड़ने के मूड में नहीं हैं। अपनी उम्र और सेहत की वजह से वे दिल्ली की राजनीति में किसी तरह की भूमिका नहीं निभाना चाहते हैं। चंद्रबाबू नायडू भी मुख्यमंत्री बनने को ही तरजीह देंगे। हालांकि एक अटकल यह भी थी कि वे अपने बेटे नारा लोकेश को मुख्यमंत्री बना देंगे और खुद दिल्ली में कोई बड़ी भूमिका लेने की कोशिश करेंगे। कहा जा रहा है कि वे दोनों गठबंधनों में उप प्रधानमंत्री पद की मांग कर सकते हैं।
नीतीश कुमार चाहते हैं कि बिहार विधानसभा का चुनाव जल्दी है। भाजपा और राजद दोनों को इस पर आपत्ति थी। लेकिन अगर भाजपा जल्दी चुनाव के लिए तैयार हो जाती है तो नीतीश की पहली पसंद भाजपा ही होगी। लोकसभा चुनाव में जिस तरह से उनकी पार्टी ने प्रदर्शन किया है उसके बाद उनकी पार्टी के नेताओं को लग रहा है कि इस गठबंधन में रहते हुए विधानसभा चुनाव हुए तो फिर से जदयू 70 या 80 सीटों का पुराना आंकड़ा हासिल कर सकती है। इसके अलावा वे बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहे हैं। यही मांग आंध्र प्रदेश की भी है। क्या भाजपा इनका समर्थन देने के लिए इस मांग पर विचार करेगी? पुराने फॉर्मूले में टीडीपी ने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के समय अपना स्पीकर बनाया था। क्या इस बार भी ऐसी कोई मांग हो सकती है? इससे पहले नरेंद्र मोदी ने टके सेर भाजी, टके सेर खाजा का हिसाब बनाया था और कहा था कि हर सहयोगी पार्टी से सिर्फ एक मंत्री बनेगा, चाहे उसके कितने भी सांसद हों। इसी वजह से नीतीश कुमार ने पहले सरकार में शामिल होने से इनकार किया था। लेकिन इस बार ऐसा कोई फॉर्मूला काम नहीं करेगा। टीडीपी और जनता दल यू दोनों को अपने सांसदों की संख्या के हिसाब से मंत्री पद और मंत्रालय चाहिए होगा। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि दोनों पार्टियां बेहतर डील का इंतजार करेंगी।