कुछ दिन पहले बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने कहा था कि उनकी पार्टी कोई गठबंधन नहीं करेंगी क्योंकि तालमेल करके चुनाव लड़ने पर बसपा का वोट तो सहयोगी पार्टियों को मिल जाता है लेकिन सहयोगी पार्टियों का वोट बसपा को नहीं मिलता है। यह बात तथ्यात्मक रूप से गलत है क्योंकि बसपा ने जब भी तालमेल किया है तब उनकी पार्टी को फायदा हुआ है। कई बार तो उनकी पार्टी का वोट सहयोगी पार्टी को ट्रांसफर नहीं हुआ और सहयोगी पार्टियों का वोट उनको मिल गया। ऐसा पिछले लोकसभा चुनाव में ही हुआ, जब वे समाजवादी पार्टी से तालमेल करके लड़ीं। 2019 के चुनाव में जब वे लड़ने उतरीं तो उनकी पार्टी का एक भी सांसद नहीं था, जबकि सपा के पांच सांसद थे। चुनाव में सपा तो पांच ही सीट पर रह गई, लेकिन बसपा जीरो से 10 सीट पर पहुंच गई।
यह पहला मौका नहीं था, जब बसपा को गठबंधन से फायदा हुआ था। बसपा ने गठबंधन करके पहला चुनाव 1993 में लड़ा था, जब मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने गठबंधन बनाया था। बसपा को 1991 के चुनाव में सिर्फ 12 सीटें मिली थीं। लेकिन सपा के साथ तालमेल करके 1993 का चुनाव लड़ने के बाद उसके सीटों की संख्या 67 पहुंच गई और उसे 11.12 फीसदी वोट मिले। यानी एक चुनाव में 55 सीट का फायदा हुआ। इसके बाद ही मायावती 1995 में पहली बार मुख्यमंत्री बनी थीं। इसके बाद 1996 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के साथ तालमेल कर लिया, जिसमें वे 296 और कांग्रेस 126 सीटों पर लड़ी। इस चुनाव में बसपा की पहले वाली सीटें बरकरार रहीं लेकिन उसका वोट बढ़ कर 19.64 फीसदी पहुंच गया। इस तरह चाहे 1993 का चुनाव हो या 1996 का हो या 2019 का हो, हर बार जब बसपा तालमेल करके लड़ती है तो उसको फायदा होता है। तभी माना जा रहा है कि अगले लोकसभा चुनाव में भी मायावती का फैसला तालमेल के पक्ष में जाएगा।