कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में वोट और सीट के लिहाज से ऐतिहासिक रूप से सबसे निचले स्तर पर है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे ढाई फीसदी से भी कम वोट मिले थे और उसका सिर्फ एक विधायक जीता। बिहार में भी कांग्रेस की जो हैसियत है वह राष्ट्रीय जनता दल के दम पर है। झारखंड में जरूर पार्टी की स्थिति थोड़ी ठीक है। लेकिन कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव में इन तीनों राज्यों में सहयोगी पार्टियों से बहुत ज्यादा सीटों की मांग कर रही है। उत्तर प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी सपा विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का हिस्सा है और उसने भी साथ मिल कर लड़ने का संकल्प किया है। लेकिन उसके नेता हैरान हैं कि दो फीसदी वोट वाली कांग्रेस कैसे 20 सीटों की मांग कर रही है। सपा नेताओं का कहना है कि कांग्रेस के पास दो सीटों पर लड़ने के लिए नेहरू-गांधी परिवार से दो उम्मीदवार हो सकते हैं। इसके अलावा तो उसके पास अच्छे उम्मीदवार भी नहीं हैं। परंतु कांग्रेस ने 20 लोकसभा सीटों से मोलभाव शुरू किया है। उधर दूसरी सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल ने भी 12 सीटों से भाव-ताव शुरू किया है।
बिहार में कांग्रेस पार्टी के नेता 2015 के विधानसभा चुनाव के फॉर्मूले के आधार पर अपनी सात सीटें पक्की मान रहे हैं लेकिन अभी पार्टी ने नौ सीटों से मोलभाव शुरू किया है। पहले कहा जा रहा था कि कांग्रेस की ओर से 16-16-8 सीट का फॉर्मूला बना है। यानी राजद और जदयू 16-16 सीट पर लड़ें और कांग्रेस को आठ सीट दें। लेकिन अब कांग्रेस ने एक सीट की मांग और कर दी है। उसे अब नौ सीटें चाहिएं। उधर झारखंड में जेएमएम गठबंधन में कांग्रेस हमेशा लोकसभा में ज्यादा सीटों पर लड़ती रही है। लेकिन अब जेएमएम की ताकत बहुत बढ़ गई है। वह 30 सीट के साथ विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी है। सो, वह लोकसभा में भी बराबर या ज्यादा सीट मांग रही है। लेकिन कांग्रेस राज्य की 14 में से आठ से कम सीट पर लड़ने को तैयार नहीं है। असल में तीनों राज्यों में कांग्रेस को बेहतर करने की उम्मीद है। अभी इन तीन राज्यों की 134 सीटों में से कांग्रेस के सिर्फ तीन सांसद हैं। तीनों राज्यों में एक-एक।