विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की गतिविधियां होल्ड पर हैं क्योंकि कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ रही है। सवाल है कि पांच राज्यों के चुनाव के साथ साथ विपक्षी गठबंधन की राजनीति नहीं हो सकती थी? कांग्रेस की ओर से विपक्षी गठबंधन की समन्वय समति में केसी वेणुगोपाल रखे गए हैं। वे पांच राज्यों में क्या भूमिका निभा रह हैं? जानकार सूत्रों कहना है कि कांग्रेस ने जान-बूझकर पूरा मामला होल्ड करा दिया है ताकि कुछ राज्यों के प्रादेशिक क्षत्रपों पर दबाव बने। असल में कांग्रेस तीन राज्यों- बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के प्रादेशिक क्षत्रपों की राजनीति से परेशान है। इसलिए उसने उनके ऊपर दबाव बनाना शुरू किया है।
दबाव की इस राजनीति में कांग्रेस ने प्रदेश कमेटियों से कहा है कि वे इन तीन राज्यों की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी करें। ध्यान रहे इन तीन राज्यों में कांग्रेस की सिर्फ तीन लोकसभा सीटें हैं। तीनों राज्यों में एक एक सीट उसके पास है। कांग्रेस के एक जानकार नेता का कहना है कि कांग्रेस अगले चुनाव में किसी हाल में इससे ज्यादा सीट जीत लेगी। तीन की चार ही हो लेकिन सीट बढ़ेगी। इसलिए कांग्रेस सहयोगियों की चिंता नहीं कर रही है। कांग्रेस का कहना है कि चिंता सहयोगी पार्टियों को करनी चाहिए, जिनका आधार एक एक राज्य का है। वे कांग्रेस पर दबाव डाल कर कुछ ज्यादा हासिल नहीं कर पाएंगी।
कांग्रेस इस वजह से भी इन राज्यों में सहयोगियों की परवाह नहीं कर रही है क्योंकि उसको लग रहा है कि बहुत सद्भाव दिखा कर भी प्रादेशिक पार्टियां कांग्रेस के लिए ज्यादा सीट नहीं छोड़ने वाली हैं। मिसाल के तौर पर बिहार की 40 लोकसभा सीटों में राजद और जदयू ने 16-16 सीटें आपस में बांट ली हैं। इसका मतलब है कि कांग्रेस और लेफ्ट पार्टियों के लिए सिर्फ आठ सीटें बचती हैं। अगर मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी गठबंधन का हिस्सा बनती है तो ये सीटें और कम हो जाएंगी। सो, अगर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार बहुत सद्भाव दिखाएंगे तो कांग्रेस के लिए तीन की बजाय चार सीट छोड़ देंगी। इतनी सीटों के लिए कांग्रेस क्यों उनकी लल्लो-चप्पो करे?
इसी तरह झारखंड में पहले लोकसभा चुनाव में राज्य की 14 सीटों में से कांग्रेस आठ से नौ सीट पर लड़ती रही है। लेकिन इस बार झारखंड मुक्ति मोर्चा बराबर सीटों की मांग कर रही है। अगर वह कांग्रेस के लिए आठ सीट छोड़ती है तो उसी में से लेफ्ट और राजद को सीट देने की भी बात हो रही है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इस बार अमेठी सीट लड़ने का भी संकेत दे चुके हैं। उनकी पार्टी बार बार इशारा कर रही है कि सपा 65 सीटों पर लड़ेगी। इसका मतलब है कि जितनी भी सहयोगी पार्टियां जुड़ेंगे उनके लिए 15 सीटें हैं। सोचें, राष्ट्रीय लोकदल, कांग्रेस, अपना दल कमेरावादी के बीच इनमें से कितनी-कितनी सीटें बंटेंगी? तभी कांग्रेस ने वहां भी सपा से सद्भाव दिखाना बंद कर दिया है। पांच राज्यों के विधानसभ चुनाव के बाद इस बारे में बात होगी लेकिन यह तय है कि कांग्रेस उतनी सीटों र नहीं मानेगी, जितनी सहयोगियों की ओर से देने की बात हो रही है।