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विपक्ष की योजना में केरल, बंगाल का पेंच

विपक्ष की योजना में केरल, बंगाल का पेंच

जिस बात की आशंका पहले से जताई जा रही थी वह अब सामने आने लगी है। विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ में सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस के नेता लगातार भाग ले रहे थे लेकिन पहले दिन से माना जा रहा था कि दोनों के बीच तालमेल की संभावना न्यूनतम है। इसका कारण सिर्फ यह नहीं कि दोनों पार्टियां एक दूसरे की धुर विरोधी हैं या ममता बनर्जी की पार्टी ने पश्चिम बंगाल में लेफ्ट मोर्चे का तीन दशक से ज्यादा पुराना शासन खत्म किया, बल्कि इसके रणनीतिक कारण हैं। इसी तरह पहले से यह आशंका जताई जा रही थी कि केरल में कांग्रेस और लेफ्ट का तालमेल नहीं हो सकता है। इसके भी कारण रणनीतिक ही हैं। अब सीपीएम ने इन दोनों राज्यों का सवाल उठा दिया है।

मुंबई में हुई ‘इंडिया’ की बैठक में 13 सदस्यों की समन्वय समिति बनी थी। इसकी घोषणा के बाद बताया गया कि इसमें 14 सदस्य होंगे। कहा गया कि 14वां सदस्य सीपीएम का होगा, जिसका नाम पार्टी की ओर से बाद में बताया जाएगा। लेकिन 13 सितंबर समन्वय समिति की पहली बैठक हुई तब तक सीपीएम ने नाम नहीं बताया। अब पार्टी ने कहा है कि वह समन्वय समिति का हिस्सा नहीं बनेगी। इसका सीधा कारण यह है कि जिन राज्यों में पार्टी का आधार है  वहां उसे तालमेल नहीं करना है। जब उसको तालमेल नहीं करना है तो सीट बंटवारे की बैठक में उसके बैठने का भी कोई मतलब नहीं है।

ध्यान रहे केरल में सीपीएम के नेतृत्व वाला एलडीएफ लोकसभा की सिर्फ एक सीट जीत पाया है, बाकी 19 सीटें कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के पास हैं। यह संभव नहीं है कि दोनों गठबंधन आधी आधी सीटें बांटें। अगर दोनों में गठबंधन होता है तो भाजपा के लिए पूरा मैदान खाली हो जाएगा और पिछले कई दशक से पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही भाजपा वहां स्थापित हो जाएगी। भले वह लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीते लेकिन उसका वोट 10 से बढ़ कर दोगुना या उससे भी ज्यादा हो सकता है। तभी रणनीति के तहत लेफ्ट और कांग्रेस अलग अलग लड़ेंगे ताकि सभी 20 सीटों के साथ साथ वोट भी उन्हीं के पास रहे। दोनों को पता है कि 2026 में लोकसभा का चुनाव उनको एक दूसरे के खिलाफ ही लड़ना है।

पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों का कोई आधार नहीं बचा है। लेकिन उसको चिंता है कि अगर वह ममता बनर्जी के साथ गई तो छह-सात फीसदी का जो वोट उसके पास है वह भी खत्म हो जाएगा। वह वोट ममता और भाजपा में बंट जाएगा और लेफ्ट की वापसी का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो जाएगा। दूसरा कारण यह है कि अगर आमने-सामने की लड़ाई होती है यानी लड़ाई त्रिकोणात्मक नहीं होती है तो हिंदू वोटों का ज्यादा ध्रुवीकरण होगा, जिसका फायदा भाजपा को हो सकता है। त्रिपुरा में भी सीपीएम के नेता किसी स्थिति में ममता बनर्जी की पार्टी को साथ रखने के लिए राजी नहीं होंगे। हालांकि वहां कांग्रेस के साथ तालमेल हो सकता है। सो, बंगाल और त्रिपुरा में लेफ्ट और कांग्रेस मिल कर लड़ सकते हैं और केरल में दोनों के बीच आमने सामने की घमासान लड़ाई होगी।

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