भारतीय जनता पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों के साथ साथ सात सांसदों को मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव में उतारा है। अभी तक सिर्फ 78 नामों की घोषणा हुई है, जिनमें सात सांसद हैं। बची हुई 152 सीटों की घोषणा में कुछ और सांसदों के नाम शामिल हो सकते हैं। सवाल है कि भाजपा का यह दांव कितना सही है? इससे भाजपा को फायदा होगा या अंदरूनी टकराव बढ़ेगा, जिसका पार्टी को नुकसान हो सकता है? निश्चित रूप से टिकट देने से पहले पार्टी नेताओं ने इस बारे में सोचा होगा। लेकिन इससे यह तथ्य नहीं बदल जाएगा कि राजनीति में कोई किसी का दोस्त नहीं होता है। यह बरसों से होता आया है कि नेता अपनी सीट जीतने के साथ ही अपने प्रतिद्वंद्वी को हराने की कोशिश भी करता है। अगर ऐसा अंदरूनी टकराव पार्टी में शुरू हुआ तो बड़ा नुकसान होगा।
मिसाल के तौर पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ग्वालियर-चंबल संभाग के नेता हैं। वे मुरैना की दिमनी सीट से लड़ेंगे। यह इलाका सिंधिया परिवार का भी गढ़ रहा है। ग्वालियर और गुना दोनों सीटों से परिवार के सदस्य सांसद बनते रहे हैं। गुना लोकसभा के तहत आने वाली शिवपुरी विधानसभा सीट से जयोतिरादित्य सिंधिया की बुआ भाजपा की विधायक हैं। सो, इस इलाके में तोमर और सिंधिया के समर्थक अपना अपना दांव चलेंगे। भाजपा ने हर क्षेत्र से कोई न कोई चेहरा दे दिया है। भोपाल रीजन से शिवराज सिंह चौहान, मालवा-निमाड़ से कैलाश विजयवर्गीय, महाकौशल से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद राकेश सिंह और ग्वालियर-चंबल संभाग से नरेंद्र सिंह तोमर लड़ेंगे। सो, हर क्षेत्र में कांग्रेस से लड़ाई के साथ साथ मुख्यमंत्री पद के दावेदारों को अंदरूनी लड़ाई भी लड़नी होगी। भाजपा के नेता इसे बड़ा दांव बता रहे हैं कि इससे किसी एक चेहरे पर फोकस नहीं होगा और यह मैसेज जाएगा कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व में लड़ रही है लेकिन यह दांव जोखिम वाला भी हो सकता है।