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शिंदे की पार्टी पर भाजपा का दबाव

शिंदे की पार्टी पर भाजपा का दबाव

महाराष्ट्र में एक बार फिर कुछ बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम होने की संभावना दिख रही है। राज्य की राजनीति में तूफान से पहले की शांति है। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे पर भाजपा का बड़ा दबाव है। जानकार सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने शिंदे को अपनी पार्टी का विलय भाजपा में करने को कहा है। हालांकि शिंदे और उनकी पार्टी के नेता इसके लिए तैयार नहीं हैं। लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि उनकी पार्टी से जुड़े कई विधायक और सांसद स्वतंत्र रूप से भाजपा के संपर्क में हैं और अगर शिंदे अपनी पार्टी यानी चुनाव आयोग की ओर से मान्यता प्राप्त असली शिव सेना का विलय भाजपा में नहीं करते हैं तो ये विधायक और सांसद भाजपा के साथ जा सकते हैं।

जानकार सूत्रों के मुताबिक भाजपा की ओर से एकनाथ शिंदे को समझाया गया है कि उनके साथ शिव सैनिक नहीं हैं और भले चुनाव आयोग ने उनकी पार्टी को असली शिव सेना की मान्यता दे दी है लेकिन जनता की नजर में अब भी असली शिव सेना उद्धव ठाकरे वाली ही है। खुद भाजपा ने भी बिहार में असली लोक जनशक्ति पार्टी दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान वाले गुट को ही माना है। इसलिए वह मान रही है कि महाराष्ट्र में भी बाल ठाकरे के असली उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे ही हैं। इस आधार पर एकनाथ शिंदे को समझाया जा रहा है कि शिव सेना के चुनाव चिन्ह पर लड़ कर जीतना उनके लिए मुश्किल होगा। लेकिन अगर वे अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर लेते हैं तो भाजपा के चुनाव चिन्ह पर उनके लोगों का जीतना आसान हो जाएगा।

एकनाथ शिंदे की पार्टी के भाजपा में विलय का एक फायदा भाजपा को यह दिख रहा है कि शिव सेना का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। यानी एक हिंदुवादी पार्टी कम हो जाएगी। भाजपा बहुत दिन से इस प्रयास में थी कि उसकी तरह हिंदुवादी राजनीति करने वाला दूसरा ब्रांड मजबूत नहीं होने पाए। बड़ी मुश्किल से भाजपा ने महाराष्ट्र में शिव सेना को कमजोर किया है और उसे तीसरे, चौथे नंबर की पार्टी बनाया है। इसलिए वह अपनी ताकत देकर अगले चुनाव में शिंदे गुट को मजबूत नहीं करने वाली है।

हालांकि इस राजनीति का एक नुकसान भी भाजपा को है। अगर वह किसी तरह से एकनाथ शिंदे गुट के नेतृत्व वाले शिव सेना का विलय भाजपा में करा ले तो फिर पूरा मैदान उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले शिव सेना को मिल जाएगा। अभी शिव सैनिकों को ज्यादा समर्थन उनके साथ है लेकिन कुछ इलाकों में शिव सैनिक शिंदे के साथ हैं। वे अगर पार्टी का विलय करते हैं तो मजबूरी में शिव सैनिक उद्धव के साथ जाएंगे। शिंदे गुट के बहुत सारे विधायक और सांसद भी वापस लौट जाएंगे। इस तरह शिव सेना का नाम और चुनाव चिन्ह तो जब्त हो जाएगा लेकिन ठाकरे परिवार की ताकत बढ़ जाएगी। सो, यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा शिंदे की पार्टी का विलय कराती है या स्वतंत्र राजनीति करने देती है?

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