भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की पहली तीन सूची जारी होने के बाद कोर्स करेक्शन किया। जमीनी फीडबैक के आधार पर पार्टी ने रणनीति बदली और अनायास कहीं से किसी को लड़ा देने की रणनीति छोड़ दी। बताया जा रहा है कि जिस तरह से भाजपा ने एक झटके में तीन केंद्रीय मंत्रियों सात सांसदों को चुनाव में उतारा और जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अनदेखी सार्वजनिक रूप से की उसका अच्छा असर राज्य में देखने को नहीं मिली। पार्टी को जमीनी फीडबैक यह मिली कि शिवराज की छवि अब भी ठीक है और उनके खिलाफ बहुत गुस्सा नहीं है।
दूसरे, सांसदों को लोकसभा की टिकट देकर भेजने से जमीनी कार्यकर्ता निराश हुए हैं। सात सांसदों को टिकट देकर भाजपा ने कम से कम 21 दावेदारों को निराश किया है। इस बीच यह भी कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ भी इस प्रयोग से खुश नहीं है। ध्यान रहे मध्य प्रदेश आरएसएस की प्रयोगशाला है। वहां संघ की जड़ें बहुत गहरी हैं और शिवराज सिंह चौहान की वहां तक पहुंच है। जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी के जमीनी स्तर से या संघ के स्तर से यह मैसेज दिया गया कि मध्य प्रदेश में गुजरात का प्रयोग नहीं चलेगा। दोनों राज्यों में बहुत फर्क है। अगर गुजरात फॉर्मूले पर टिकट बांटने या प्रचार की रणनीति बनी तो वह उलटी पड़ सकती है। भाजपा आलाकमान को भी जमीन स्तर से इस तरह की फीडबैक मिली। लेकिन तब तक तीर कमान से छूट चुका था। अब काफी कुछ ठीक किया गया है लेकिन फिर भी ऐसा माना जा रहा है कि पार्टी का दांव उलटा भी पड़ सकता है।