मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लड़ने के मूड में आ गए हैं। एक तरफ मीडिया में ऐसी खबरें आ रही हैं कि प्रधानमंत्री उनकी अनदेखी कर रहे हैं, मध्य प्रदेश की रैलियों में शिवराज सरकार के कामकाज की बजाय केंद्र सरकार के कामकाज की चर्चा कर रहे हैं। मंच पर शिवराज को तवज्जो नहीं दे रहे हैं आदि आदि। दूसरी ओर शिवराज सिंह चौहान के अलग तेवर देखने को मिल रहे हैं। पिछले दो तीन दिन से वे जमीन पर भी लड़ने के तेवर दिखा रहे हैं और ऐसा लग रहा है कि पार्टी के अंदर भी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं। वे यह मैसेज दे रहे हैं कि वे कहीं जाने वाले नहीं हैं। भले पार्टी ने उनको मुख्यमंत्री का दावेदार नहीं घोषित किया है लेकिन वे अपने को सीएम दावेदार के तौर पर ही रख कर प्रचार कर रहे हैं।
उन्होंने एक जुमला बोला है ‘शिवराज हूं हैं, शिवराज हू मैं’। इसे वे हर जगह दोहरा रहे हैं। उन्होंने शहडोल की एक सभा में कहा कि ‘शहडोल के विकास की आवाज हूं मैं, शिवराज हूं मैं’। इसके बाद उन्होंने एक दूसरी सभा में कहा, ‘महिला सशक्तिकरण की आवाज हूं मैं, शिवराज हूं मैं’। फिर एक अन्य कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि वे देखने में भले दुबले-पतले हैं लेकिन लड़ने में बहुत तेज हैं। सोचें, मोदी के नाम पर हो रहे चुनाव में शिवराज नाम का इतना जाप क्या संकेत देता है? इसका मतलब है कि शिवराज का नजरिया बदल गया है। अब तक उनको लग रहा था कि आलाकमान के हिसाब से काम करने से कुर्सी पक्की होगी। लेकिन जब ऐसा होता नहीं दिखा है तो वे दूसरा रास्ता अपना रहे हैं। घी निकालने के लिए सीधी उंगली की बजाय टेड़ी उंगली का इस्तेमाल कर रहे हैं।