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लालू और राहुल की मुलाकात का संयोग

राष्ट्रीय जनता दल के संस्थापक अध्यक्ष लालू प्रसाद और कांग्रेस नेता राहुल गांधी की शुक्रवार को मुलाकात हुई। यह एक राजनीतिक मुलाकात थी लेकिन एक स्तर पर लालू प्रसाद के परिवार से इसे पारिवारिक मुलाकात भी बना दिया। इस मुलाकात का एक दिलचस्प संयोग है। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मानहानि के मामले में राहुल गांधी को सूरत की अदालत से मिली दो साल की सजा पर रोक लगाई थी। इसके बाद राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता बहाल होने का रास्ता साफ हो गया। इस फैसले के बाद राहुल ने लालू प्रसाद की बेटी मीसा भारती के आवास पर जाकर लालू से मुलाकात की।

दिलचस्प संयोग यह है कि जिन राहुल गांधी को अदालत की वजह से राहत मिली और संसद की सदस्यता बहाल होने का संयोग हुई उन्हीं राहुल गांधी की वजह से लालू प्रसाद पिछले करीब 10 साल से संसद से बाहर हैं। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटने के लिए एक अध्यादेश लागू करने का फैसला किया था। उसमें प्रावधान था किसी भी जन प्रतिनिधि को किसी भी आपराधिक मामले में जब तक सर्वोच्च अदालत से सजा नहीं हो जाएगी, तब तक उसकी न तो सदस्यता छीनी जाएगी और न उसको चुनाव लड़ने से रोका जाएगा।

राहुल गांधी ने इस अध्यादेश की कॉपी फाड़ दी थी और इसे कानून बनने से रोक दिया था। यह कानून नहीं बना तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिली थॉमस मामले में दिया गया आदेश लागू हो गया कि निचली अदालत से किसी भी मामले में दो साल या उससे अधिक की सजा होते ही चुने हुए प्रतिनिधि की सदस्यता समाप्त हो जाएगी और वह चुनाव नहीं लड़ पाएगा। अगर ऊपरी अदालत सजा पर रोक लगाती है तभी चुनाव लड़ने की गुंजाइश है। इस फैसले की वजह से लालू प्रसाद 2014 से चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद ने अपने हाथों से मटन बना कर राहुल को खिलाया। क्या राहुल को ‘दुल्हा’ बनाने में लगे लालू ने उनसे अपनी शिकायत भी की होगी?

बहरहाल, एक दिलचस्प संयोग यह भी था कि इस मुलाकात में राजद और कांग्रेस के नेता तो मौजूद थे लेकिन नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का कोई नेता नहीं था। कुछ नेता इसे पारिवारिक मुलाकात बता रहे हैं। अगर यह पारिवारिक मुलाकात थी तो कांग्रेस के बिहार के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह और राजद के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी वहां क्या कर रहे थे? यह भी कहा जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के संयोजक के नाम को लेकर चर्चा हुई, सीट बंटवारे के बारे में चर्चा हुई और नीतीश सरकार में कांग्रेस कोटे से मंत्री बनाने के बारे में बात हुई। सवाल है कि क्या सीट बंटवारा तीनों पार्टियों के बीच साझा बातचीत से नहीं होनी चाहिए? और क्या मंत्री बनाना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार नहीं है?

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