भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी है। उसने उम्मीदवारों की तीन सूची जारी की है, जिसमें 79 नाम हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी 21 नामों की घोषणा हो गई है। इनमें से एक मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो छत्तीसगढ़ में वह विपक्षी पार्टी है। सवाल है कि राजस्थान में क्या पेंच है, जो पार्टी वहां उम्मीदवारों की घोषण नहीं कर रही है? अगर भाजपा ने रणनीति के तहत चुनाव की घोषणा से पहले ही उम्मीदवारों की घोषणा शुरू कर दी है तो उसी रणनीति के तहत राजस्थान में घोषणा क्यों नहीं हो रही है? क्या भाजपा को लग रहा है कि जो रणनीति मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए सही है वह राजस्थान के लिए सही नहीं है? दोनों राज्यों में भाजपा हारी हुई और कमजोर सीटों पर उम्मीदवार उतार रही है। ऐसी ही सीटों पर राजस्थान में भी उम्मीदवार की घोषणा हो सकती थी लेकिन नहीं हुई है।
राजस्थान और तेलंगाना दोनों जगह भाजपा की अलग रणनीति है। राजस्थान के बारे में जानकार सूत्रों का कहना है कि पार्टी के अंदर बहुत ज्यादा खींचतान है। पार्टी कई खेमों में बंटी है और हर खेमा अपने उम्मीदवार के लिए दबाव बना रहा है। जानकार नेताओं के मुताबिक राजस्थान में अभी तक हर सीट पर तीन या चार नाम का पैनल भी तय नहीं हुआ है। अलग अलग खेमों के नेता एक एक टिकट को लेकर इतने सावधान हैं कि पिछले दिनों कई रिटायर अधिकारी भाजपा में शामिल हुए तो तुरंत इसका विरोध शुरू हो गया कि बाहर से आए किसी व्यक्ति को खासतौर से किसी रिटायर अधिकारी को टिकट नहीं दिया जाना चाहिए। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष के सामने इस बात की शिकायत की गई। पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं को टिकट देने की बात हो रही है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राजस्थान में भाजपा के पास सकारात्मक फीडबैक है। वह मजबूत स्थिति में है इसलिए पहले उम्मीदवार घोषित करके किसी तरह का विवाद खड़ा नहीं करना चाह रही है।