मुख्यमंत्री पद का दावेदार पेश करके चुनाव लड़ने की परंपरा को भाजपा ने सैद्धांतिक रूप दिया था। 2003 से पहले प्रादेशिक पार्टियां ऐसे चुनाव लड़ती थीं। राष्ट्रीय पार्टियों का स्टैंड होता था कि चुनाव के बाद विधायक नेता चुनेंगे। लेकिन 2003 में भाजपा ने मध्य प्रदेश में उमा भारती और राजस्थान में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करके चुनाव लड़ा। दोनों राज्यों में भाजपा जीती और उसके बाद कई राज्यों में पार्टी ने इस सिद्धांत को आजमाया। दूसरी ओर कांग्रेस ज्यादातर समय बिना चेहरा घोषित किए लड़ती रही। अब 20 साल के बाद भाजपा ने यह सिद्धांत बदल दिया।
जिन राज्यों से इसे शुरू किया था उन्हीं राज्यों में भाजपा अब बिना चेहरे के लड़ने जा रही है। इससे पहले पिछले 20 साल से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा घोषित या अघोषित रूप से वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह के चेहरे पर लड़ती रही थी। इस बार तीनों राज्यों में कोई चेहरा नहीं होगा। पार्टी सामूहिक नेतृत्व में लड़ रही है और इस वजह से दोनों राज्यों में कई जगहों से परिवर्तन यात्रा निकाल रही है ताकि एक व्यक्ति के ऊपर फोकस न बने। इसके उलट कांग्रेस इस बार तीनों राज्यों में घोषित या अघोषित रूप से नेताओं के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में दोनों मुख्यमंत्रियों अशोक गहलोत और भूपेश बघेल का चेहरा है तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस कमलनाथ के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है।