पिछले दिनों दो नामों की बड़ी चर्चा रही। पहले शरद मराठे का नाम सुनने में आया और फिर बिबेक देबरॉय की चर्चा हुई। बिबेक देबरॉय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख हैं। उन्होंने अंग्रेजी के एक कारोबारी अखबार में लेख लिख कर कहा कि भारत के लोगों को नए संविधान की जरूरत है। इस पर बड़ा विवाद हुआ। विपक्ष की ओर से तीखा हमला हुआ और स्वतंत्र विचारकों ने भी इसे भाजपा और आरएसएस की बड़ी साजिश बताया। कई लोगों ने कहा कि इससे आरक्षण, समानता, स्वतंत्रता जैसी चीजें खत्म हो जाएंगी और इसका इस्तेमाल संसदीय लोकतंत्र की जगह अध्यक्षीय प्रणाली की स्थापना के लिए किया जाएगा।
सवाल है कि क्या बिबेक देबरॉय की राय पर प्रधानमंत्री मौजूदा संविधान की जगह नया संविधान लाने के बारे में सोचेंगे? कई लोग इस पर यकीन नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह बड़ा राजनीतिक फैसला है, जो किसी आर्थिक जानकार के कहने से नहीं किया जाएगा। लेकिन तभी शरद मराठे का नाम आया। वे प्रवासी भारतीय हैं और एक आईटी कंपनी चलाते हैं। नीति आयोग के कुछ कथित दस्तावेजों के आधार पर मीडिया में खबर आई थी कि शरद मराठे की सलाह पर तीनों विवादित कृषि बिल तैयार किए गए ताकि खेती को कॉरपोरेट के हाथ में दिया जा सके। उससे पहले यह खबर आई थी कि अनिल बोकिल की सलाह पर नोटबंदी का फैसला हुआ था। अगर अनिल बोकिल या शरद मराठे इतना बड़ा फैसला करा सकते हैं तो बिबेक देबरॉय का नाम तो उनसे बड़ा ही है!