भारत में लोगों की सामूहिक याद्दाश्त बहुत कमजोर होती है। तभी ज्यादातर लोग किरण पटेल को भूल गए होंगे। वैसे भी पिछले कुछ दिनों में इतने सारे ठगों की एक जैसी कहानियां आई हैं कि सब गडमड भी हो गया है। एक के बाद एक ऐसे फ्रॉड पकड़े गए हैं, जो प्रधानमंत्री कार्यालय या अपने को किसी दूसरे केंद्रीय मंत्रालय का अधिकारी बता कर लोगों से ठगी करते थे। लेकिन इन सबमें किरण पटेल सबसे अलग था। उसने जम्मू कश्मीर जाकर अपने को प्रधानमंत्री कार्यालय का बड़ा अधिकारी बताया और यह भी संकेत दिया कि उसे किसी बड़े मिशन में लगाया गया है। उसने अधिकारियों को बेवकूफ बना कर जेड श्रेणी की सुरक्षा हासिल कर ली और बेहद संवेदनशील जगहों तक गया, जहां किसी आम आदमी को जाने की इजाजत नहीं थी।
इस तरह उसने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया और किसी को पता नहीं है कि उसकी असली मंशा क्या थी। तभी उसके खिलाफ ऐसी धाराओं में मुकदमे हुए, जिनमें उम्रकैद तक की सजा होती है। लेकिन अचानक जम्मू कश्मीर पुलिस ने धारा 467 हटा दिया। इस धारा में उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान था, जिसकी वजह से उसे पहली बार में जमानत नहीं मिली थी। लेकिन जैसे ही यह धारा हटाई गई उसके बाद उसके खिलाफ केस कमजोर हो गया और उसे जमानत मिल गई।
सवाल है कि किसकी मेहरबानी हुई, जो पुलिस ने उसके खिलाफ लगाई गई धारा 467 हटा ली? जज ने जमानत देते हुए इस बात का जिक्र किया कि पुलिस ने यह धारा हटा दी है इसलिए वे जमानत दे रहे हैं। एक तरफ लोग मामूली आरोप में सालों जेल में सड़ रहे हैं तो दूसरी ओर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बना एक व्यक्ति, जिसने प्रधानमंत्री कार्यालय को बदनाम किया उसका केस कमजोर करके उसे जमानत दिलाई जा रही है! ध्यान रहे गुजरात के मुख्यमंत्री कार्यालय में अतिरिक्त जनसंपर्क अधिकारी रहे हितेश पंड्या के बेटे अमित पंड्या का नाम भी इस मामले से जुड़ा है और कहा जा रहा है कि उसने किरण पटेल को कश्मीर में फ्रॉड करने में मदद की थी।