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नेहरू पर संघ का नजरिया बदल रहा है क्या?

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ऐतिहासिक रूप से देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीतियों का विरोधी रहा है। भाजपा की नीतियों में भी यह साफ दिखाई देता है। केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद नेहरू का वैचारिक विरोध निजी द्वेष में बदल गया। सोशल मीडिया में किसी भी तरह से नेहरू और उनके परिवार को बदनाम करने का अभियान चलने लगा। देश में जो भी कमी दिखती है उसका ठीकरा नेहरू पर फोड़ा जाता है और जो भी अच्छा है उसका या तो जिक्र नहीं होता है या उसका श्रेय किसी और को दिया जाता या परिस्थितियों को दिया जाता है। लेकिन पिछले दिनों एक घटनाक्रम ऐसा हुआ, जिससे लग रहा है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का नजरिया बदल रहा है। संघ के शीर्ष पदाधिकारियों में से एक कृष्ण गोपाल ने एक कहानी सुना कर नेहरू और इंदिरा गांधी की ईमानदारी और पारिवारिक संस्कारों की तारीफ कर दी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में कृष्ण गोपाल ने कहानी सुनाई थी भारत के परिवारों में रसोई घर किस तरह से अहम है यह बताने के लिए। लेकिन उस कहानी का सार नेहरू की ईमानदारी और अच्छाई का था। कृष्ण गोपाल ने बताया कि नेहरू के प्रधानमंत्री रहते एक बाल  फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। पुरस्कार समारोह के बाद नेहरू फिल्म की पूरी कास्ट से मिले और उन्होंने एक बच्चे को गोद में उठा लिया। इसके बाद उन्होंने सभी कलाकारों को प्रधानमंत्री निवास में खाने पर आमंत्रित कर दिया। फिल्म से जुड़े ख्वाजा अहमद अब्बास ने हिचकते हुए कहा कि इतने लोगों को एक साथ खाने पर बुलाना क्या संभव होगा। इस पर नेहरू ने कहा कि वे इंदिरा से पूछ कर बताते हैं क्योंकि रसोई का काम उनकी देख-रेख में चलता है।

कृष्ण गोपाल के मुताबिक नेहरू ने इंदिरा से पूछा तो थोड़ी देर की चुप्पी के बाद उन्होंने सबको खाने पर बुलाने की हामी भरी। अब्बास ने जब उनसे हिचक का कारण पूछा तो इंदिरा ने कहा कि उनके बाबा यानी नेहरू का वेतन बहुत कम है और अक्सर वे बहुत लोगों को खाने पर बुला लेते हैं, जिससे किचेन का बजट बिगड़ जाता है। इस कहानी से किचेन का कोई महत्व साबित नहीं होता है लेकिन कृष्ण गोपाल ने यह कहानी सुनाई तो इसका कुछ तो मतलब होगा!

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