कई क्षेत्रीय पार्टियों में कांग्रेस को लेकर परेशानी है। मुस्लिम वोट की राजनीति करने वाली पार्टियों की परेशानी ज्यादा है क्योंकि उनको लग रहा है कि कांग्रेस वापस मुस्लिम वोट क्लेम कर सकती है और अगर ऐसा हुआ तो कई प्रादेशिक पार्टियों की राजनीति बहुत कमजोर हो जाएगी। प्रादेशिक पार्टियों के मन में यह आशंका कर्नाटक के चुनाव नतीजों से पैदा हुई, जहां मुस्लिम मतदाताओं ने एचडी देवगौड़ा की पार्टी को छोड़ कर एकमुश्त वोट कांग्रेस को दिया। ध्यान रहे उसके बाद ही कांग्रेस को साथ लेकर विपक्षी गठबंधन बनाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। कांग्रेस ने भी इस बात को समझा है इसलिए वह अभी विपक्षी पार्टियों को ज्यादा तरजीह नहीं दे रही है।
कांग्रेस और सभी विपक्षी पार्टियों की नजर तेलंगाना के विधानसभा चुनाव पर है। प्रादेशिक पार्टियों को पता है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा का सीधा मुकाबला है इसलिए मुस्लिम को वहां कोई दुविधा नहीं है। वह कांग्रेस को वोट देगा। लेकिन तेलंगाना में के चंद्रशेखर राव की पार्टी भारत राष्ट्र समिति के साथ साथ मुस्लिम मतदाताओं के पास असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया एमआईएम का भी विकल्प है। अगर इनको छोड़ कर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस को वोट देते हैं, जिसकी संभावना चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में बताई जा रही है तो वह गेमचेंजर होगा। इसका मतलब होगा कि भाजपा से लड़ने के लिए मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद कांग्रेस है। इसका असर कई राज्यों की राजनीति में दिखेगा। बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में इसका असर होगा और तभी इन राज्यों के प्रादेशिक क्षत्रप किसी न किसी रूप में कांग्रेस को निशाना बना रहे हैं।