सुप्रीम कोर्ट की फटकार और बड़े संवैधानिक फैसले के बाद भी तमिलनाडु के राज्यपाल पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। वे अब भी अपने को तमिलनाडु की चुनी हुई सरकार का मुख्य विपक्ष मान कर राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने विधेयक लंबित रखने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट की ओर से पलट देने के बाद राज्य सरकार को नीचा दिखाने के लिए नई पहल की।
राज्यपाल आरएन रवि ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की बैठक बुला ली। असल में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कुलपतियों की बैठक की थी। तो राज्यपाल को लगा कि विश्वविद्यालय उनके अधीन आते हैं और उन्हें अपनी ताकत दिखानी चाहिए। इसलिए उन्होंने सभी कुलपतियों की बैठक ऊटी में बुलाई। दो दिन की इस बैठक का उद्घाटन करने के लिए उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को बुलाया गया। लेकिन 25 और 26 अप्रैल को हुआ यह सम्मेलन पूरी तरह से फ्लॉप रहा।
राज्यपाल-कुलपति बैठक पर विवाद
हालांकि उप राष्ट्रपति पहुंच गए थे और उन्होंने कुलपतियों के सम्मेलन का उद्घाटन किया लेकिन उसमें राज्य के किसी विश्वविद्यालय का कुलपति नहीं पहुंचा था। सिर्फ निजी विश्वविद्यालयों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के कुलपति पहुंचे थे। जब राज्य विश्वविद्यालय का कोई कुलपति नहीं पहुंचा तो राज्यपाल काफी नाराज हुए।
उन्होंने एमके स्टालिन की सरकार पर पुलिस राज चलाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राज्य की सीक्रेट पुलिस ने कुलपतियों को राज्यपाल के कार्यक्रम में जाने से रोका। सवाल है कि राज्यपाल को क्यों अपना शक्ति प्रदर्शन करना है और दूसरा सवाल यह है कि वे क्यों बार बार एक संवैधानिक पद को अपमानित कराने वाले काम कर रहे हैं? क्या उनको तमिलनाडु का विधानसभा चुनाव लड़ना है?
ध्यान रहे ऊटी में कुलपतियों की बैठक बुलाने के राज्यपाल के फैसले से प्रदेश भाजपा के नेता भी नाराज थे और संघ के पदाधिकारियों को भी यह बात अच्छी नहीं लगी थी। भाजपा की सहयोगी अन्ना डीएमके तो खैर राज्यपाल के ऐसे कामों ने दूरी बना कर रखती ही है।
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