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रात्रिभोज पर विपक्षी मुख्यमंत्रियों की राजनीति

भारत में या दुनिया के किसी भी लोकतंत्र में यह सिर्फ कहने की बात होती है कि अमुक बात पर राजनीति नहीं होनी चाहिए या अमुक बात राजनीति से परे है। असल में हर बात पर राजनीति होती है, चाहे होती हुई दिखे या न दिखे। यहां तो जी-20 देशों के मेहमानों के लिए आयोजित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के रात्रिभोज में साफ-साफ राजनीति होती हुई दिखी। शुरुआत केंद्र सरकार ने की, जिसने इस पूरे आयोजन को सरकारी बना दिया और यह तय किया कि सिर्फ सरकार के लोगों को बुलाया जाएगा। तभी विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्री बुलाए गए लेकिन विपक्ष के नेता नहीं बुलाए गए। इसके बाद मुख्यमंत्रियों ने अलग राजनीति की। जो रात्रिभोज में पहुंचे उनकी अलग राजनीति थी और जो नहीं पहुंचे उनकी अपनी राजनीति थी।

पहले नहीं पहुंचने वालों को देखें। विपक्षी पार्टियों के जो मुख्यमंत्री रात्रिभोज में नहीं पहुंचे उनमें से तीन के यहां अगले दो महीने में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव इसलिए नहीं गए कि उनके यहां चुनाव होने वाले हैं और वे भाजपा और केंद्र सरकार के विरोध की अपनी राजनीति को जरा सा भी कमजोर होने देना अफोर्ड नहीं कर सकते थे। केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन नहीं गए और उसका कारण वैचारिक था। वामपंथी पार्टियों का मानना है कि यह पूरा आयोजन पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाला है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान इसलिए नहीं गए क्योंकि केजरीवाल और उनकी पार्टी का पूरा राजनीतिक नैरेटिव भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लड़ने का है। विपक्ष का चेहरा बनने के लिए वे जो प्रयास कर रहे हैं उसमें यह उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि केजरीवाल सम्मेलन में जाकर प्रधानमंत्री और मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवाते।

विपक्षी पार्टियों के जो मुख्यमंत्री रात्रिभोज में शामिल हुए उनकी अपनी राजनीति थी। पिछले करीब डेढ़ साल से सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार कर रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसमें शामिल होकर बिहार की जनता को मैसेज दिया है कि उनका भाजपा के प्रति सद्भाव है तो कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों को मैसेज है कि जल्दी से उनको संयोजक बनाया जाए। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को नौ सितंबर को ही ईडी ने पूछताछ के लिए बुलाया था। उस दिन  वे राष्ट्रपति के डिनर में चले गए।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन रात्रिभोज में शामिल हुए। इसका कारण यह था कि उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को लेकर जो बयान दिया था उसका राज्य में तो राजनीतिक लाभ है लेकिन देश के स्तर पर पार्टी के अलग थलग होने का खतरा है। सो, स्टालिन पिता-पुत्र एक कदम आगे, दो कदम पीछे की राजनीति कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एकमात्र सिरदर्द चुनाव में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण रोकने की है। तभी वे किसी न किसी तरह से राज्य के हिंदू मतदाताओं को मैसेज देती रहती हैं कि वे भाजपा और आरएसएस के वैसे खिलाफ नहीं हैं, जैसा दिखाया जाता है। उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी पर गिरफ्तारी की तलवार भी लटक रही है।

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