देश की तमाम पार्टियों में से कांग्रेस इकलौती पार्टी है, जो महिला आरक्षण को लेकर सबसे ज्यादा मुखर रही है। जुबानी जमाखर्च करने में कांग्रेस सबसे आगे रही है। हालांकि केंद्र में 2004 से 2014 तक उसकी सरकार थी और उसने महिला आरक्षण पास कराने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। उस समय की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा महिला आरक्षण के पक्ष में थी लेकिन कांग्रेस ने इसे पास नहीं कराया। सोचें, उसने भाजपा और लेफ्ट सबके विरोध के बावजूद अमेरिका के साथ परमाणु संधि का बिल पास करा लिया लेकिन भाजपा और लेफ्ट के समर्थन के बावजूद महिला आरक्षण बिल पास नहीं कराया। बाद में भाजपा ने पास कराया तो कांग्रेस के नेता आए दिन उसमें कमियां निकालते हैं।
अब इस मामले में कांग्रेस का दोहरा रवैया सामने आ गय़ा है। राहुल गांधी के प्रयोग के तहत गुजरात में 40 जिलों और शहरी ईकाई के अध्यक्षों की नियुक्ति हुई है। इन 40 में कांग्रेस को सिर्फ एक महिला नेता मिली, जिसको अध्यक्ष बनाया गया है। 40 में एक मतलब आधी आबादी को सिर्फ चार फीसदी का प्रतिनिधित्व! गांधीनगर सीट पर अमित शाह के खिलाफ लड़ीं सोनल पटेल को अहमदाबाद नगर का अध्यक्ष बनाया गया है। कांग्रेस का कहना है कि उसे मजबूत महिला नेता नहीं मिलीं। सोचें, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को टिकट देने के लिए 40 फीसदी महिलाएं मिल गईं! ओडिशा में नवीन पटनायक को भी 40 फीसदी महिलाएं मिल गईं। लेकिन राहुल गांधी को गुजरात में संगठन संभालने के लिए महिलाएं नहीं मिलीं। जब तक महिला आरक्षण लागू होगा उससे पहले कम से एक तिहाई महिलाओं को तो आगे लाना चाहिए!