कांग्रेस पार्टी हरियाणा में न सिर्फ माइक्रो प्रबंधन में कांग्रेस से पिछड़ी, बल्कि जातीय समीकरण में भी भाजपा भारी पड़ी है। कांग्रेस का जातीय समीकरण पूरी तरह से जाट व मुस्लिम वोट तक सिमट कर रह गया। वह बहुत ज्यादा दलित वोट भी नहीं हासिल कर सकी। इसका नतीजा यह हुआ है कि कांग्रेस पार्टी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गढ़ में सोनीपत और गोहाना जैसी सीट हार गई। जाटों के गढ़ में जैसे जैसे जाट वोट एकजुट हुआ उसी अनुपात में दूसरी जातियों के वोट गोलबंद हो गए। पहले लग रहा था कि कांग्रेस का जाट, दलित और मुस्लिम वोट एक रहेगा तो यह 50 फीसदी से ऊपर चला जाएगा, जिसमें से कांग्रेस आसानी से जीतने लायक वोट हासिल कर लेगी। तभी एक्जिट पोल के नतीजों में भी कांग्रेस को 43 फीसदी वोट मिलने का अनुमान जताया गया था। लेकिन कांग्रेस 40 फीसदी के आसपास वोट पर सिमट गई तो उसका कारण यह रहा कि वह पूरे राज्य में जाट और मुस्लिम को अलावा दूसरा वोट नहीं ले सकी।
दूसरी ओर भाजपा का सामाजिक समीकरण बहुत बड़ा हो गया। उसने चुनाव से पहले पिछडी जाति का मुख्यमंत्री बनाने का जो दांव चला वह भी कामयाब हो गया। ध्यान रहे राज्य में पिछड़ी जाति की आबादी 36 फीसदी के करीब है। हरियाणा में संभवतः पहली बार पिछड़ी जाति का कोई नेता मुख्यमंत्री बना था तो पिछड़ी जातियों ने एकजुट होकर भाजपा को वोट दिया। चुनाव के बीच में भाजपा के बड़े नेता अनिल विज ने मुख्यमंत्री पद की दावेदारी की थी तो खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा जाकर स्पष्ट किया कि भाजपा नायब सिंह सैनी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है और भाजपा जीती तो सैनी ही मुख्यमंत्री होंगे। चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने हर जगह घूम घूम कर सफाई दी और कहा कि कोई दूसरा सीएम पद का दावेदार नहीं है। भाजपा जीती तो सैनी सीएम बनेंगे। इसका नतीजा यह हुआ कि पिछड़ा वोट पूरी तरह से भाजपा के साथ जुड़ गया। इसके अलावा कई इलाकों में खासकर एनसीआर और ब्रजभूमि से सटे इलाकों में हिंदू मुस्लिम का जो नैरेटिव बना था उसका भी फायदा भाजपा को मिला।