हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा सारे दांव आजमा रही है। वह किसी हाल में दिल्ली से सटे हरियाणा की सत्ता गंवाना नहीं चाहती है। इसके कई कारण हैं। पहला तो इसका बहुत बड़ा हिस्सा एनसीआर में आता है इसलिए राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। दिल्ली में अगले साल विधानसभा चुनाव है, जिसमें भाजपा जी जान लगा कर लड़ेगी। अगर उससे पहले हरियाणा में वह हार जाती है और कांग्रेस की सरकार बन जाती है तो दिल्ली चुनाव पर उसका बड़ा असर होगा। दूसरे, हरियाणा की सत्ता कांग्रेस के हाथ में जाने से कांग्रेस संगठन की भी ताकत बढ़ती है। फिर दिल्ली में किसी भी रैली या प्रदर्शन में कांग्रेस पर्याप्त भीड़ जुटाने में सक्षम हो जाती है। एक कारण यह भी है कि अगर भाजपा हरियाणा में हारती है तो 10 साल की डबल इंजन सरकार की विफलता का शोर मचेगा, जिसका असर दूसरे राज्यों पर भी होगा।
तभी कहा जा रहा है कि तीसरी बार जीतने के लिए भाजपा सारे दांव आजमा रही है। इसमें एक दांव कांग्रेस के वोट का बंटवारा कराना है। पूर्व मंत्री हरियाणा लोकहित पार्टी के नेता गोपाल कांडा के एक बयान से भाजपा की रणनीति का कुछ अंदाजा होता है। वे सिरसा से इंडियन नेशनल लोकदल और बसपा एलायंस के साथ मिल कर लड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव जीत कर वे भाजपा की सरकार बनवाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि इनेलो और बसपा भी राज्य में भाजपा की सरकार बनवाएंगे। हालांकि इनेलो ने इससे इनकार किया है। लेकिन कहा जा रहा है कि इस बयान से उस गठबंधन को फायदा हो सकता है। जहां भाजपा मजबूत नहीं होगी वहां भाजपा समर्थक इस गठबंधन के साथ जा सकते हैं। बहरहाल, दुष्यंत चौटाला की जजपा व चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी गठबंधन को भी भाजपा का प्रॉक्सी कहा जा रहा है और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को भी प्रॉक्सी ही माना जा रहा है।