भारतीय जनता पार्टी देश भर में नए सहयोगी तलाश रही है। साथ छोड़ कर चले गए पुराने सहयोगियों को वापस लाया जा रहा है। लेकिन हरियाणा में ऐसा लग रहा है कि भाजपा अपनी सहयोगी जननायक जनता पार्टी से पीछा छुड़ा रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हरियाणा दौरे के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा और जजपा का तालमेल नहीं रहेगा। हालांकि यह तय नहीं हैं कि जजपा राज्य सरकार में रहेगी या नहीं लेकिन यह तय बताया जा रहा है कि भाजपा लोकसभा की सभी 10 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी। अगर भाजपा अकेले चुनाव लड़ने का फैसला करती है तो मजबूरी में जजपा को सरकार से अलग होना पड़ सकता है। उसके बाद भी निर्दलीय विधायकों के दम पर सरकार चलती रह सकती है। उस समय कोई भी सरकार गिराने की नहीं सोचेगा क्योंकि लोकसभा चुनाव के तीन चार महीने बाद ही विधानसभा के चुनाव होते हैं।
पहले कहा जा रहा था कि विधानसभा का चुनाव इस बार लोकसभा के साथ ही हो सकता है लेकिन इसकी संभावना कम है। लोकसभा के साथ किसी ऐसे राज्य का चुनाव नहीं होगा, जहां भाजपा सरकार में है या मजबूत स्थिति में है। असल में लोकसभा की कई सीटों को लेकर समीकरण नहीं बैठ रहा है। मिसाल के तौर पर हिसार सीट देख सकते हैं, जिस पर जजपा के नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की नजर है। वे पहले वहां से लड़ते रहे हैं। इसी तरह चौटाला परिवार की पारंपरिक सिरसा सीट पर भी उनकी नजर है। दूसरी ओर हिसार सीट पर पूर्व आईएएस बृजेंद्र सिंह भाजपा सांसद हैं, जो बीरेंद्र सिंह के बेटे हैं। कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए कुलदीप बिश्नोई भी इसी सीट के दावेदार हैं। सो, भाजपा पहले से ही अपने दो नेताओं की खींचतान में फंसी है। भाजपा के एक जानकार नेता का कहना है कि बात एक या दो सीटों की नहीं है, बल्कि पार्टी इस भरोसे में है कि नरेंद्र मोदी के नाम पर वह इस बार भी दसों सीट जीत सकती है। इसलिए वह किसी के लिए सीट नहीं छोड़ना चाहती।