झारखंड की राजनीति दिलचस्प हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन जेल से रिहा हो गए हैं। झारखंड हाई कोर्ट ने जमीन से जुड़े धन शोधन के मामले में उनको जमानत दे दी है। उनके जेल से बाहर आते ही इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि वे मुख्यमंत्री बनेंगे या नहीं। उनको जमानत मिलने से भाजपा को उम्मीद बनी है कि पार्टी के अंदर खींचतान शुरू होगी। ऐसा होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
अगर हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बनना चाहते तो निश्चित रूप से विवाद होता और भाजपा को इसे मुददा बनाने का मौका मिलता। चम्पई सोरेन भले अपनी मर्जी से इस्तीफा देते फिर भी भाजपा को मुद्दा बनाने का मौका मिलता। इसका नुकसान जेएमएम को कोल्हान के इलाके में होता, जहां के नेता हैं चम्पई सोरेन। उनको कोल्हान टाइगर कहा जाता है। कोल्हान में जमशेदपुर और चाईबासा का इलाका है, जहां की 15 में से एक भी विधानसभा सीट भाजपा के पास नहीं है।
हेमंत सोरेन को अंदाजा है कि अगर वे चम्पई सोरेन की जगह मुख्यमंत्री बने तो इसका नुकसान होगा। इसलिए पार्टी ने तय किया है कि अभी चम्पई सोरेन ही मुख्यमंत्री रहेंगे। उन्हीं के नेतृत्व में पार्टी चुनाव लड़ेगी और अगर फिर से जेएमएम, कांग्रेस, राजद गठबंधन को बहुमत मिलता है तो हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बनेंगे। जेएमएम की यही रणनीति पहले भी थी, जब हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन गांडेय विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ रही थीं। उनके चुनाव के समय ही कहा जा रहा था कि अगर वे जीतीं तो मुख्यमंत्री बनेंगी।
चार जून को आए नतीजे में वे बड़े अंतर से जीतीं लेकिन उन्होंने सीएम बनने की कोई पहल नहीं की। फिर कहा गया कि वे उप मुख्यमंत्री बनेंगी लेकिन यह भी नहीं। ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि पार्टी और शिबू सोरेन परिवार ने फैसला किया था कि एक बार चम्पई सोरेन को बना दिया गया है तो उनको छेड़ा नहीं जाएगा और उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। यह भी कहा जा रहा है कि हेमंत या कल्पना सोरेन के मुख्यमंत्री बन जाने पर सहानुभूति खत्म हो जाती। उसको भुनाने के लिए दोनों अब प्रदेश भर की यात्रा करेंगे।