यह लाख टके का सवाल है कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बातों का भारत खुल कर जवाब क्यों नहीं दे रहा है? यह सवाल 10 मई से उठ रहा है, जिस दिन ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर का ऐलान किया था। उसके बाद से वे कम से कम 50 बार कह चुके हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों पर व्यापार बंद करने और टैरिफ बढ़ाने की दबाव डाल कर युद्ध रूकवाया। भारत ने कई तरह से घुमा फिरा कर इसका जवाब दिया लेकिन एक बार नहीं कहा गया कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं। इसी तरह अब ट्रंप ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको भरोसा दिलाया है कि भारत अब रूस से कच्चा तेल नहीं खरीदेगा। इस बारे में पूछा जा रहा है तो भारत सरकार की ओर से सीधा जवाब नहीं दिया जा रहा है।
सोचें, ट्रंप के दावे के बारे में पूछा गया तो विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि जहां तक उनको जानकारी है दोनों के बीच बुधवार को कोई बातचीत नहीं हुई है। यह किसी ने नहीं पूछा था कि बातचीत हुई थी या नहीं। सवाल यह था कि भारत ने अमेरिका को ऐसा भरोसा दिया है या नहीं? इसका सीधा जवाब हां या नहीं में हो सकता है। ध्यान रहे ट्रंप ने यह नहीं कहा कि उनकी बात मोदी से हुई है। उन्होंने कहा कि मोदी ने उनको भरोसा दिलाया है और इसी के साथ उन्होंने कहा कि उनकी ओर से भारत में नियुक्त अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी। क्या पता गोर से मुलाकात में ऐसी कोई बात हुई हो? अगर ट्रंप कह रहे हैं कि उनको भरोसा दिलाया गया है तो भारत सीधे कहे कि ऐसा कोई भरोसा नहीं दिया गया है। यह क्या बात हुई कि दोनों के बीच बात नहीं हुई है! इसी तरह रूस से तेल खरीदना बंद करने के सवाल का भी इतना घूमा कर जवाब दिया गया है कि सर चकरा जाए। इसके बचाव में कहा जा रहा है कि यह डिप्लोमेसी है। इसका मतलब है कि सिर्फ हम लोगों को डिप्लोमेसी आती है बाकी अमेरिका और उसके राष्ट्रपति तो डिप्लोमेसी के मामले में डफर हैं!
