राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने साफ कर दिया है कि विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में कांग्रेस को अलग थलग करने की जो राजनीति चल रही है उस पर कांग्रेस बैकफुट पर नहीं है। कांग्रेस भी आर पार के मूड में है। गहलोत ने दो टूक अंदाज में कहा कि दिल्ली में कांग्रेस का पहला दुश्मन आप यानी आम आदमी पार्टी है। पूरे देश में तो कांग्रेस की लड़ाई भाजपा से होती है और दिल्ली में भी कांग्रेस त्रिकोणात्मक लड़ाई बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन जिस तरह की राजनीति ‘इंडिया’ ब्लॉक की सहयोगी पार्टियों ने की है उससे कांग्रेस नाराज है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि सबसे बड़ी पार्टी के नाते वह सबको साथ लेकर चलने को तैयार है लेकिन इसमें बाकी पार्टियों को भी सहयोग करना होगा। कांग्रेस ने लोकसभा में आम आदमी पार्टी से दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में तालमेल किया तो उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में बिना सीट लिए सपा का समर्थन किया।
लेकिन अब ‘इंडिया’ ब्लॉक की पार्टियां तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के उकसावे पर कांग्रेस को अलग थलग करने में लगी हैं। असल में दिल्ली में अभी जो दिख रहा है वह नेतृत्व के मसले पर ममता बनर्जी के दिए बयान का ही विस्तार है। ममता ने कहा था कि वे ‘इंडिया’ ब्लॉक का नेतृत्व करने को तैयार हैं। इस पर सपा और राजद से लेकर शरद पवार की एनसीपी और उद्धव ठाकरे की शिव सेना तक ने उनका समर्थन किया था। जिन पार्टियों ने नेतृत्व के मसले पर ममता बनर्जी का समर्थन किया वे सब दिल्ली में आम आदमी पार्टी का समर्थन कर रही हैं। सपा और तृणमूल कांग्रेस ने खुल कर समर्थन का ऐलान कर दिया है तो उधर राजद के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि ‘इंडिया’ का गठन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए हुआ था, राज्यों के लिए नहीं। इस तरह उन्होंने भी दिल्ली में आप के समर्थन का संकेत दिया है। उद्धव ठाकरे की पार्टी आने वाले दिनों में समर्थन का ऐलान करगी।
कांग्रेस के सामने विकल्प था कि वह सहयोगी पार्टियों की इस राजनीति को चुपचाप देखे और हाशिए में रहे या उत्तर प्रदेश के उपचुनाव की तरह दिल्ली में चुनाव नहीं लड़े या फिर खुल कर आम आदमी पार्टी से लड़े क्योंकि आप को रोके और हराए बिना वह न तो दिल्ली में वापसी कर सकती है और न पंजाब हासिल कर सकती है। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों की तरह दिल्ली और पंजाब से भी खत्म हो जाएगी और हमेशा किसी न किसी की बैशाखी के सहारे उसे राजनीति करनी होगी। कांग्रेस को यह अंदेशा भी था कि अगर वह दिल्ली में मन मार कर बैठ जाती है तो यह प्रक्रिया यही खत्म नहीं होगी। राष्ट्रीय स्तर पर और दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस को ऐसे ही किनारे किया जाएगा। कांग्रेस के नेता यह भी मान रहे हैं कि कई प्रादेशिक पार्टियां भाजपा और केंद्र सरकार कहने पर कांग्रेस को कमजोर करने की राजनीति कर रही हैं। सो, दिल्ली में कांग्रेस मजबूती से लड़ रही है। उसने मजबूत उम्मीदवार दिए हैं और खुल कर आम आदमी पार्टी के ऊपर हमला कर रही है। कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी चुनाव में उतरना चाहिए और करो या मरो के अंदाज में लड़ना चाहिए। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे ‘इंडिया’ ब्लॉक में कांग्रेस की लीडरशिप तय करने वाले होंगे। यह तय है कि वह जीतेगी नहीं, लेकिन उसने आप को हरा दिया तो फिर कोई प्रादेशिक पार्टी उसको किनारे करने की राजनीति नहीं करेगा। फिर नेतृत्व का मसला अपने आप ठंडा पड़ जाएगा।