इंडिया बनाम भारत को लेकर चल रही बहस एक राजनीतिक मुद्दा है। इसका इतिहास या संस्कृति से ज्यादा मतलब नहीं है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ दोनों ने इसे राजनीति का मुद्दा बना दिया है। भारत के संविधान के अनुच्छेद एक में लिखा हुआ है कि इंडिया जो कि भारत है। इसका मतलब है कि देश का नाम इंडिया और भारत दोनों है और दोनों का इस्तेमाल किया सकता है। अगर अब तक प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया लिखा जाता था तो इसका यह मतलब नहीं है कि प्रेसिडेंट ऑफ भारत नहीं लिखा जा सकता है। जैसे हिंदी में भारत के राष्ट्रपति लिखा जाता है लेकिन अगर कोई इंडिया के राष्ट्रपति लिखने लगेगा तो यह गलत नहीं होगा। भारत के प्रधानमंत्री भी लिखा जा सकता है और इंडिया के प्रधानमंत्री भी लिखा जा सकता है। इससे यह नहीं लगता है कि सरकार नाम बदलने जा रही है। अगर नाम बदलना भी होगा तो वह भी कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। आस पड़ोस में ही कितने नाम बदल गए। सिलॉन को श्रीलंका कहा जाने लगा और बर्मा म्यांमार हो गया।
बहरहाल, विपक्षी पार्टियों ने क राजनीतिक दांव चलते हुए अपने गठंबधन का नाम ‘इंडिया’ रख लिया। इसके लिए एक मुश्किल नाम गढ़ा गया इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस। आमतौर पर इस तरह का नाम कोई नहीं रखता है। लेकिन विपक्ष को ‘इंडिया’ नाम रखना था इसलिए उसने ऐसा किया। उसके बाद भाजपा को मौका मिल गया और उसने हर जगह भारत कहना और लिखना शुरू कर दिया। ध्यान रहे 18 जुलाई को बेंगलुरू में विपक्षी गठबंधन ने ‘इंडिया’ नाम रखा और उसके एक हफ्ते बाद ही 26 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रगति मैदान में ‘भारत मंडपम’ का उद्घाटन किया। इसमें जी-20 का शिखर सम्मेलन होगा। दुनिया भर के अखबारों में वेन्यू ‘भारत मंडपम’ छपेगा। उसी ‘भारत मंडपम’ में ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ की ओर से सभी मेहमानों के लिए रात्रिभोज का आयोजन किया गया है। भारत नाम के बहाने भाजपा देश की धार्मिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विरासत पर फोकस कर रही है तो विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ नाम लेकर भाजपा के साथ शह-मात का खेल खेल रहा है।