जम्मू कश्मीर में विधानसभा भंग हुए पांच साल होने जा रहे हैं। नवंबर 2018 में राज्य की विधानसभा भंग की गई थी। उसके करीब एक साल बाद में अनुच्छेद 370 हटा कर राज्य का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया और राज्य का विभाजन भी कर दिया गया। तब से इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि कब राज्य में चुनाव होगा। परिसीमन की रिपोर्ट आई तो लगा था कि अब जल्दी ही चुनाव होगा। लेकिन उसके भी काफी समय बीत गए और अभी तक चुनाव की सुगबुगाहट नहीं है। बार बार कहा जा रहा है कि चुनाव आयोग फैसला करेगा कि कब चुनाव कराना है। लेकिन सबको पता है कि फैसला केंद्र सरकार को करना है कि कब चुनाव कराएं।
परिसीमन के बाद राज्य में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ कर 90 हो गई है। पहले राज्य में 87 सीटें थीं, जिनमें से चार सीटें लद्दाख में थीं। उसके अगल होने के बाद 83 सीटें बची थीं, जिनमें सात सीटों का इजाफा किया गया है। छह सीटें जम्मू में बढ़ी हैं और एक कश्मीर घाटी में। इस बार नौ सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए भी आरक्षित की गई हैं। इस बदलाव के बाद माना जा रहा है कि भाजपा चुनाव जीत कर अपना मुख्यमंत्री बना सकती है। कहा जा रहा है कि जब तक भाजपा को इस बात का यकीन नहीं होगा कि वह जीत सकती है, तब तक चुनाव शायद नहीं होंगे।
बहरहाल, एक बार फिर कहा जा रहा है कि राज्य में चुनाव की तैयारियां हो रही हैं। दो संभावनाएं जताई जा रही हैं। पहली संभावना यह है कि साल के अंत में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ वहां भी चुनाव हो जाएं। दूसरी संभावना ज्यादा प्रबल है कि अगले साल लोकसभा चुनाव के साथ विधानसभा चुनाव हो। उसमें भाजपा को ज्यादा फायदा होगा। उससे पहले केंद्र सरकार मौजूदा सत्र में जम्मू कश्मीर पुनर्गठन कानून, 2019 में बदलाव करने जा रही है। इस बदाल के बाद उप राज्यपाल को अधिकार होगा कि वे दो कश्मीरी प्रवासियों को और पाक अधिकृत कश्मीर से विस्थापित होकर आए एक व्यक्ति को विधानसभा में मनोनीत करें। कानून में बदलाव के लिए बिल लाए जाने के बाद ही यह चर्चा तेज हुई है कि जल्दी ही चुनाव हो सकते हैं।