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महबूबा तालमेल के लिए बेचैन हैं

जम्मू कश्मीर में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती विधानसभा चुनाव में तालमेल के लिए बेचैन हैं। तभी उन्होंने अपनी पार्टी का घोषणापत्र जारी करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस उनके घोषणापत्र को मानें तो वे तालमेल के लिए तैयार हैं। तालमेल की इससे ज्यादा बेचैनी नहीं दिखाई जा सकती थी क्योंकि महबूबा को पता है कि उन्होंने घोषणापत्र जारी किया है वह फारूक और उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के घोषणापत्र की तरह ही है। दोनों में एक ही बातें लिखी गई हैं। मेहबूबा से पहले फारूक अब्दुल्ला ने ऐलान किया कि उनकी सरकार बनी तो अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली के प्रयास करेंगे।

सवाल है कि जब महबूबा को पता है कि उनका और नेशनल कॉन्फ्रेंस का घोषणापत्र एक ही है और कांग्रेस उसे मान रही है तो यह कहने का क्या मतलब है कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस उनके घोषणापत्र को मानें तो वे तालमेल को तैयार हैं? इसका सीधा मतलब यह है कि कांग्रेस और अब्दुल्ला परिवार ने उनको दूर रखा हुआ है। असल में कश्मीर घाटी की 47 सीटों में बंटवारा फारूक और उमर अब्दुल्ला नहीं चाहते हैं। उनको पता है कि महबूबा को भी घाटी में ही चुनाव लड़ना है। वहां सीटों का बंटवारा हुआ तो कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी तीनों को कुछ कुछ सीटें आएंगी और तब महबूबा की बात मानने की मजबूरी हो जाएगी। अब्दुल्ला परिवार ने कांग्रेस को तो इसलिए साथ रखा क्योंकि उनको लग रहा था कि कांग्रेस अकेले लड़ी तो मुसलमानों का जैसा रूझान उसकी ओर दिख रहा है वह ज्यादा सीटें जीत सकती है। महबूबा से ऐसा खतरा किसी को नहीं दिख रहा है। लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी एक्सपोज हो गई है। उनसे ज्यादा कट्टरपंथी राजनीति करने वाली शेख राशिद की पार्टी अलग चुनाव लड़ रही है।

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