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आदिवासी घटने के दावे का क्या आधार?

भारतीय जनता पार्टी झारखंड में विधानसभा चुनाव अपने इस सबसे बड़े मुद्दे पर लड़ती दिख रही है कि राज्य में हिंदू और आदिवासी कम हो रहे हैं। पहले प्रदेश के नेताओं ने इस बात का प्रचार किया। फिर लैंड जिहाद और लव जिहाद का मुद्दा बना कर बांग्लादेशी घुसपैठियों के झारखंड की जनसंख्या संरचना बदलने के आरोप लगाने के लिए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा को चुनाव का सह प्रभारी बना कर झारखंड लाया गया। फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बात का प्रचार किया और अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह आरोप लगा रहे हैं। हालांकि जब केंद्रीय गृह मंत्री ने बांग्लादेशी घुसपैठियों के झारखंड के संथालपरगना पहुंचने और वहां लैंड व लव जिहाद करने के आरोप लगाए गए तो यह सवाल पूछा गया कि सीमा की सुरक्षा तो केंद्र सरकार के ही अधीन है फिर कहां से बांग्लादेशी घुसपैठिए देश के अंदर या झारखंड आ रहे हैं।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार, दो अक्टूबर को झारखंड के हजारीबाग गए तो उन्होंने भी बांग्लादेश घुसपैठियों की बात उठाई और कहा कि आदिवासी व हिंदू कम हो रहे हैं। उन्होंने ‘रोटी, बेटी और माटी’ बचाने का आह्वान किया। सवाल है कि सरकार को या भाजपा के नेताओं को कैसे पता चला कि आदिवासी और हिंदू घट रहे हैं और मुस्लिम बढ़ रहे हैं? किस आंकड़े के आधार पर भाजपा के नेता हिमंत बिस्वा सरमा यह दावा कर रहे हैं कि असम की तरह झारखंड में भी कुछ इलाकों में मुस्लिम बहुसंख्यक हो जाएंगे? सरकार के पास कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है। आखिरी बार 2011 में जनगणना हुई थी, जिसके आंकड़े 2010 में लिए गए थे। यानी पिछले 14 साल में हुए किसी भी बदलाव को प्रमाणित करने वाला कोई आंकड़ा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। इसका मतलब है कि आंकड़ों के आधार पर यह बात नहीं कही जा रही है, बल्कि राजनीतिक नैरेटिव सेट करने के लिए प्रचार किया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो सरकार और भाजपा के नेताओं किसी आंकड़े का हवाला देना चाहिए। अगर आंकड़ा 2011 से पहले का है तो सवाल उठेगा कि उसके बाद अपनी सरकार में भाजपा ने क्या किया? क्या एक भी बांग्लादेशी घुसपैठिए को अब तक भाजपा की केंद्र और झारखंड की सरकार बाहर निकाल पाई है?

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