इस बार लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद विपक्षी पार्टियों का हौसला लौटा है और मीडिया में भी सरकार से सवाल पूछे जाने लगे हैं। लेकिन एक बड़ा बदलाव अदालतों की सक्रियता में दिख रहा है। हालांकि चुनाव से पहले भी सर्वोच्च अदालत ने इलेक्टोरल बॉन्ड सहित कई मामलों में ऐसे फैसले किए थे, जिनसे सरकार असहज हुई थी। हो सकता है कि यह संयोग हो लेकिन चुनाव नतीजों के बाद ऐसे फैसलों की आवृत्ति बढ़ गई है। हालांकि सर्वोच्च अदालत ने तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के एक बयान पर नाराजगी जताते हुए कह दिया था कि अदालत के फैसले राजनीति से प्रभावित नहीं होते हैं। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट और अलग अलग राज्यों में हाई कोर्ट ने कई ऐसे फैसले किए हैं या कई ऐसी टिप्पणियां की हैं, जिनसे सरकार असहज हुई है और विपक्ष को मौका मिला है।
जजों की नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की है वह सरकार के लिए चेतावनी है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम कोई सर्च कमेटी नहीं है कि उसकी सिफारिशों को रोका जाए। ध्यान रहे सुप्रीम कोर्ट ने कई हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए दोबारा नामों की सिफारिश भेजी है। यह नियम है कि दोबारा नाम भेजे जाने पर उसे मंजूर करना होता है। लेकिन सरकार ने उसमें भी देरी की है। तो सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे नामों की सूची बनाने को कहा है, जो दोबारा भेजे गए हैं और सरकार ने मंजूरी रोकी है। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की चुनावी हिंसा की सुनवाई दूसरे राज्य की अदालत में कराने की सीबीआई की याचिका पर बहुत सख्त नाराजगी जताई है। अदालत ने कहा कि सीबीआई समूची न्यायपालिका पर सवाल उठा रही है। अदालत की नाराजगी के बाद सीबीआई को याचिका वापस लेनी पड़ी। उधर बॉम्बे हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को सबसे बड़ा झटका दिया। उसने सूचना व प्रौद्योगिक कानून यानी आईटी एक्ट में किए गए बदलावों को असंवैधानिक बताते हुए उसे रद्द कर दिया। इसका मतलब है कि सरकार अब फैक्ट चेक यूनिट नहीं बना पाएगी। हाई कोर्ट ने सरकार की ओर से किए गए बदलावों को नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताया है। इस मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ही फैक्ट चेक यूनिट बनाने की अधिसूचना रोकी थी और कहा था कि जब तक बॉम्बे हाई कोर्ट का फैसला नहीं आता है तब तक सरकार इसका गठन नहीं कर सकती है।